Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 480
________________ भगवती सूत्र - श. ६ उ. ४ प्रत्याख्यान निबद्ध आयु ८ उत्तर - हे गौतम! जो जीव, पञ्चेन्द्रिय हैं, वे तीनों को जानते हैं । शेष जीव प्रत्याख्यान को नहीं जानते हैं । (अप्रत्याख्यान को नहीं जानते हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान को भी नहीं जानते हैं । ९ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यान करते हैं ? अप्रत्याख्यान करते हैं ? प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान करते हैं ? ९ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार औधिक दण्डक कहा है, उसी प्रकार प्रत्याख्यान करने के विषय में कहना चाहिये । ९९७ विवेचन - पहले प्रकरण में जीवों का कथन किया गया है। अब इस प्रकरण में भी जीवों का ही कथन किया जाता है । प्रत्याख्यानी का अर्थ है-प्रत्याख्यान वाले अर्थात् सर्व-विरत । अप्रत्याख्यानी अर्थात् भविरत । प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी अर्थात् देश - विरत ( किसी अंश में पाप से निवृत्त और किसी अंश में अनिवृत्त) । नेरयिकादि जीव अविरत होते हैं, इसलिए वे अप्रत्याख्यानी हैं । प्रत्याख्यानी या प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी नहीं होते । Jain Education International प्रत्याख्यान तभी हो सकता है जब कि उसका ज्ञान हो। इसलिए प्रत्याख्यान के बाद प्रत्याख्यान ज्ञान का सूत्र कहा गया है। नैरयिकादि तथा दण्डकोक्त पञ्चेन्द्रिय जीव समनस्क ( संज्ञी) होने से सम्यग्दृष्टि हों, तो ज्ञपरिज्ञा से प्रत्याख्यानादि तीनों को जानते हैं। शेष जीव अर्थात् एकेंद्रिय और विकलेन्द्रिय जीव अमनस्क (असंज्ञी ) होने से प्रत्याख्या - नादि तीनों को नहीं जानते । प्रत्याख्यान तभी होता है जब कि वह किया जाता है-स्वीकार किया जाता है । इसलिए आगे प्रत्याख्यान करण सूत्र कहा गया है । प्रत्याख्यान निबद्ध आयु १० प्रश्न - जीवा णं भंते ! किं पञ्चक्खाणणिव्वत्तियाज्या, अपचक्खाणणिव्वत्तियाउया. पञ्चक्खाणापच्चक्खाणणिव्वत्तियाउया ? - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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