________________
६२२
भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ चमरेन्द्र का उत्पात
.
भावार्थ--उस काल उस समय में चमरचञ्चा राजधानी इन्द्र और पुरोहित रहित थी। वह 'पूरण' नाम का बाल-तपस्वी पूरे बारह वर्ष तक तापस पर्याय का पालन करके, एक मास की संलेखना से आत्मा को सेबित करके, साठ भक्त तक अनशन रख कर काल के अबसर काल करके चमरचञ्चा राजधानी को उपपांतसभा में इन्द्र के रूप से उत्पन्न हुआ।
चमरेन्द्र का उत्पात तएणं से चमरे असुरिंदे, असुरराया अहुणोववण्णे पंचविहाए पज्जत्तीए पजत्तिभावं गच्छइ, तं जहा-आहारपजत्तीए, जावभास-मणपजत्तीए । तएणं से चमरे असुरिंदे, असुरराया पंचविहाए पजत्तीए पजत्तिभावं गए समाणे उड्ढं वीससाए ओहिणा आभोएइ जाव-सोहम्मो कप्पो, पासइ य तत्थ सपकं देविंदं देवरायं, मघवं, पागसासणं, सयकडं, सहस्सक्खं, वजपाणिं, पुरंदरं, जाव-दस दिसाओ उज्जोवेमाणं, पभासेमाणं सोहम्मे कम्पे सोहम्मे वडिंसए विमाणे सक्कंसि सोहासणंसि, जाव-दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अन्झथिए, चिंतिए, पत्थिए, मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था के स गं एस अपत्थियपत्थए, दुरंतपंतलक्खणे, हिरिसिरिपरिवजिए, हीणपुण्णचाउद्दसे जं णं ममं इमाए एयारूवाए दिव्याए देविड्ढीए, जाव-दिव्वे देवाणुभावे लः, पत्ते, अभिसमण्णागए उप्पिं अप्पुस्सुए दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org