________________
में लगती हैं ।
भगवती सूत्र - श. ५ उ. ६ अग्निकाय का अल्पकर्म महाकर्म
इस प्रकार यह चौथा सूत्र पहले सूत्र के समान है ।
अग्निकाय का अल्पकर्म महाकर्म
९ प्रश्न - अगणिकाए णं भंते ! अहुणोज्जलिए समाणे महाकम्मतराए चेव, महाकिरिय- महासव-महावेयणतराए चेव भवहः अहे णं समए समए वोक्कसिज्जमाणे वोक्कसिज्जमाणे चरिमकालसमयंसि इंगाल भूए, मुम्मुरब्भूए, छारियन्भूए, तओ पच्छा अप्पकम्मतराए चेव अप्प किरिया - SSसव - अप्पवेयणतराए चेव भवइ ?
९ उत्तर - हंता, गोयमा ! अगणिकाए णं अहुणोज्ज लिए समाणे तं चेव ।
जाता है।
Jain Education International
कठिन शब्दार्थ - अहुणोज्ज लिए अभी जलाया हुआ, वौक्क सिज्जमाणे-कम होते हुए । भावार्थ - ९ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या तत्काल प्रज्वलित हुई अग्निकाय महाकर्मयुक्त, महाक्रियायुक्त, महाआश्रव युक्त और महावेदना युक्त होती है ? और इसके बाद समय समय कम होती हुई - बुझती हुई, अन्तिम क्षण में अंगार रूप, मुर्मुर रूप और भस्म रूप हो जाती है ? इसके बाद क्या वह अग्निकाय अल्प कर्म युक्त, अल्प क्रियायुक्त, अल्प आश्रव युक्त और अल्प वेदना युक्त होती है ? ९ उत्तर - हाँ, गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से वह अग्निकाय, महाकर्म युक्त यावत् अल्प वेदना युक्त होती है ।
विवेचन-क्रिया का प्रकरण होने से अग्निकाय सम्बन्धी क्रिया का कथन किया
८५१
प्रज्वलित होती हुई अग्नि, बन्ध की अपेक्षा ज्ञानावरणीय आदि महाकमं बंध का
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org