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भगवती सूत्र -श. ५ उ. ६ मृषावादी अभ्याख्यानो को बन्ध
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वचन और अभ्याख्यान वचन कहता है, वह किस प्रकार के कर्म बांधता है ?
१८ उत्तर-हे गौतम ! जो दूसरे को अलीक वचन, असद्भत वचन और अभ्याख्यान वचन कहता है, वह उसी प्रकार के कर्मों को बांधता है और वह जिस योनि में जाता है, वहां उन कर्मों को वेदता है और वेदने के बाद उनकी निर्जरा करता है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
विवेचन-पूर्वोक्त प्रकरण में दूसरे पर किये गये उपकार का अनन्तर-साक्षात् फल कहा गया हैं । अब दूसरे के प्रति किये गये । उपघात का फल कहा जाता है।
सत्य बात का अपलाप करना 'अलीक' कहलाता हैं । जैसे कि-किसी साधु ने ब्रह्मचर्य का पालन किया । परन्तु उसके विषय में कहना कि 'इसने ब्रह्मचर्य का पालन नहीं किया' इत्यादि 'अलीक' वचन कहलाता है। जो बात नहीं हुई है ऐसी अछती बात को प्रकट करना 'असद्भूत' कहलाता है । जैसे कि-किसी के प्रति, चोर नहीं होते हुए भी कहना कि 'यह चोर' है। यह असद्भूत वचन है । इसमें कहने वाले का दुष्ट अभिप्राय होने से अशोभन रूप है । तथा चोर न होते हुए भी यह चोर है'-यह आरोप लगाना झूठा दोषारोपण रूप मिथ्यावचन है। बहत से लोगों के सामने किसी के अविद्यमान दोषों को कहना – निर्दोष पर दोषारोपण करना 'अभ्याख्यान' कहलाता है।
इस प्रलार अलीक वचन, असद्भत वचन और अभ्याख्यान वचन कहने वाला, उसी प्रकार के कर्मों को बांधता है. फिर वह जिस योनि में जाता है, वहां उन कर्मों को भोगता है और बेदने के बाद उन कर्मों की निर्जरा होती है ।
॥ इति पांचवें शतक का छठा उद्देशक समाप्त ॥
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