________________
भगवती सूत्र - श. ६ उ. ३ कर्मों के बंधक
२१ उत्तर - हे गौतम! भवसिद्धिक जीव, कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है । अभवसिद्धिक बांधता है। नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक नहीं बांधता है । इस प्रकार आयुष्य कर्म के सिवाय शेष सात कर्म प्रकृतियों के विषय में कहना चाहिये | आयुष्य कर्म को भवसिद्धिक ( भव्य ) और अभवसिद्धिक ( अभव्य ) कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है। नोभवसिद्धिक नोभवसिद्धिक ( सिद्ध) नहीं बांधता है ।
Jain Education International
९६५
२२ प्रश्न - हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या चक्षुदर्शनौ बांधता है, अचक्षु दर्शनी बांधता है, अवधिदर्शनी बांधता है, या केवलदर्शनी बांधता है ? २२ उत्तर - हे गौतम! चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है । केवलदर्शनी नहीं बांधता है | वेदनीय कर्म के सिवाय शेष सात कर्म प्रकृतियों के विषय में इसी तरह कहना चाहिये | वेदनीय कर्म को चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी बांधते हैं । केवलदर्शनी कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते हैं ।
विवेचन- ३ सम्यग्दृष्टि द्वार - सम्यग्दृष्टि के दो भेद हैं- सराग सम्यग्दृष्टि और वीतराग सम्यग्दृष्टि । इनमें से वीतराग सम्यग्दृष्टि तो ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं बांधते हैं, क्योंकि वे तो एकविध ( वेदनीय) कर्म के बंधक हैं। सराग सम्यग्दृष्टि तो ज्ञानावरणीय कर्म बाँधते हैं इसीलिये कहा गया है कि सम्यग्दृष्टि जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है । मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्र दृष्टि ) ये दोनों तो ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते ही हैं । सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव कदाचित् आयुष्य कर्म को बाँधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते हैं। जैसे कि - अपूर्वकरणादि सम्यग्दृष्टि, आयुष्य को नहीं बांधते हैं। इससे भिन्न सम्यग्दृष्टि जीव आयुष्य के बंध काल में आयुष्य को बांधते हैं, दूसरे समय में ( आयुष्य बन्ध काल के सिवाय दूसरे समय में) नहीं बांधते है । इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि जीव भी आयुष्य बन्ध काल में आयुष्य को बांधते हैं, दूसरे समय में नहीं बांधते हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि (मिश्र दृष्टि) जीव, (मिश्रदृष्टि अवस्था में) आयुष्य बांधते ही नहीं हैं, क्योंकि मिश्रदृष्टि जीवों को आयुष्यबन्ध के अध्यवसाय स्थानों का अभाव है ।
४ संज्ञी द्वार - मनः पर्याप्ति वाले जीवों को 'संज्ञी' कहते हैं। वीतराग संज्ञी जीव तो
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org