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भगवती सूत्र - श. ६ उ. ३ कर्मों के बंधक
ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं बांधते हैं । इनसे भिन्न सराग संज्ञी जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते हैं । इसीलिए कहा है कि-संज्ञी जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को भजना से बांधते हैं अर्थात् कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते हैं । मनःपर्याप्ति से रहित जीव, असंज्ञी कहलाते हैं । वे तो ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते ही हैं । नोसंज्ञीनोअसंज्ञी जीव, केवलीया. सिद्ध होते हैं, वे ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं बांधते हैं, क्योंकि उनके ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धन के कारण (हेतु) नहीं हैं। संज्ञी जीव और असंज्ञी जीव-ये दोनों वेदनीय कर्म को बांधते ही हैं, क्योंकि अयोगी केवली और सिद्ध भगवान् के सिवाय शेष सभी जीव वेदनीय कर्म के बन्धक होते हैं । नोसंज्ञीनो असंज्ञी जीवों के तीन भेद होते हैं-सयोगी केवली, अयोगी केवली और सिद्ध भगवान् । इनमें से सयोगी केवली तो वेदनीय कर्म को बांधते हैं, किंतु अयोगी केवली और सिद्ध भगवान् नहीं बांधते हैं। इसलिए कहा गया है कि नोसंज्ञीनोअसंज्ञी जीव, वेदनीय कर्म को भजना से बांधते हैं अर्थात् कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते हैं । संज्ञी और असंज्ञी, ये दोनों आयुष्य कर्म को भजना से बांधते हैं अर्थात् आयुष्यबन्ध काल में आयुष्य को बांधते हैं और दूसरे समय में नहीं बांधते हैं । नोसंज्ञीनोअसंज्ञी ● अर्थात् केवल और सिद्ध जोव, आयुष्य को नहीं बांधते हैं ।
५ भवसिद्धिक द्वार - जो भवसिद्धिक वीतराग होते हैं, वे ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं बांधते हैं । जो भवसिद्धिक सराग होते हैं, वे ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं । इसलिए कहा है कि 'भवसिद्धिक जीव ज्ञानावरणीय कर्म को भजना से बांधते हैं।' अभवसिद्धिक तो ज्ञानावरणीय कर्म को बांधते ही हैं । नोभवसिद्धिकनोअभवसिद्धिक अर्थात् सिद्ध जीव, ज्ञानावर
कर्म को नहीं बांधते हैं । भवसिद्धिक ( भव्य ) और अभवसिद्धिक ( अभव्य ), ये दोनों प्रकार के जीव, आयुष्य बन्ध काल में आयुष्य को बांधते हैं । इससे भिन्न समय में नहीं बांधते हैं। इसलिए कहा गया है कि-भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक जीव, आयुष्य कर्म को भजन से बांधते हैं । नोभवसिद्धिकनोअभवसिद्धिक अर्थात् सिद्ध जीव, आयुष्य को नहीं बांधते हैं ।
६ दर्शन द्वारर-चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी- ये तीनों यदि छद्मस्थ वीतरागी हों, तो ज्ञानावरणीय कर्म को नहीं बांधते हैं, क्योंकि वे तो केवल एक वेदनीय कर्म के ही बन्धक होते हैं। यदि ये तीनों सरागी छद्मस्थ हो, तो बांधते हैं । इसलिए यह कहा गया है कि ये तीनों ज्ञानावरणीय कर्म, भजना से बांधते हैं। भवस्थ केवलदर्शनी और सिद्ध केवलदर्शनी, ये दोनों ज्ञानावरणीय कर्म नही बांधते हैं, क्योंकि उनके इस कर्मबन्ध का
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