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भगवती सूत्र-शं. ६ उ. ३ कर्मों के बंधक
तियों को बांधते है । आयुष्य कर्म को कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते हैं।
विवेचन-७ पर्याप्तक द्वार-वीतराग और सराग, ये दोनों पर्याप्तक होते हैं । इनमें से वीतराग पर्याप्तक तो ज्ञानावरणीय को नहीं बांधते हैं, किन्तु सराग पर्याप्तक बांधते है । इसलिए यह कहा गया है कि-पर्याप्तक जीव, ज्ञानावरणीय कर्म भजना से बांधते हैं । नोपर्याप्तक नोअपर्याप्तक अर्थात् सिद्ध जीव, नहीं बांधते हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक-ये दोनों आयुष्य के बन्ध काल में आयुष्य बांधते हैं और दूसरे समय में नहीं बांधते हैं । इसलिए आयुष्य बन्ध के विषय में इनके लिए भजना कही गई है । नोपर्याप्तक नोअपर्याप्तक अर्थात् सिद्ध जीव, आयुष्य नहीं बांधते हैं ।
८ भाषक द्वार-भाषा-लब्धि वाले को 'भाषक' कहते हैं और भाषा-लब्धि से रहित को 'अभाषक' कहते हैं । इनमें से वोतराग भाषक, ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बांधते हैं और सराग भाषक बांधते हैं । इसलिए कहा गया है कि भाषक जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को भजना से बांधते हैं । अभाषक में जो अयोगी-केवली और सिद्ध भगवान् हैं, वे तो ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बांधते हैं । विग्रह गति में रहे हुए जीव तथा पृथ्वीकायिकादि अभाषक जीव, ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं । इसलिए यह कहा गया है कि 'अभाषक जीव, ज्ञानावरणीय कर्म भजना से बांधते हैं ।' भाषक जीव, वेदनीय कर्म को बांधते ही हैं, क्योंकि सयोगी-केवली गुणस्थान के अन्तिम समय तक का भाषक भी साता-वेदनीय कर्म बांधता है । अयोगी-केवली और सिद्ध जीव-ये दोनों अभाषक होते हैं । ये दोनों वेदनीय कर्म नहीं बांधते हैं । अपर्याप्त जीव तथा पृथ्वीकायिक आदि अभाषक जीव, वेदनीय कर्म बांधते हैं, इसलिए यह कहा गया है कि -'अभाषक जीव, वेदनीय कर्म भजना से बाँधते हैं।'
९ परित्त द्वार-एक शरीर में एक जीव हो उसे 'परित्त' कहते हैं अथवा अल्प संसार वाले जीव को 'परित' कहते हैं । ऐसा जीव वीतरागी भी होता है । ऐसा परित्त वीतरागी, ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बांधता और परित्त सरागी बांधता है इसलिए कहा गया है कि 'परित जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को भजना से बांधता है । जो जीव, अनन्त जीहों के साथ एक शरीर में रहता है ऐसे साधारण काय वाले जीव' को 'अपरित्त' कहते हैं, अथवा अनन्त संसारी जीव को 'अपरित्त' कहते हैं । ये दोनों प्रकार के अपरित्त जीव, ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं। नोपरित्त नोअपरित्त अर्थात् सिद्ध जीव, ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बांधते हैं । परित्त जीव
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