________________
भगवती सूत्र-श. ६ उ. १ वेदना और निर्जरा में वस्त्र का दृष्टांत
९३७
महावीर यहाँ उदाहरण रूप हैं । अर्थात् उस समय भगवान् महावेदना और महानिर्जरा वाले थे। दूसरे प्रश्न के उत्तर में भी वे ही भगवान् उपसर्ग अवस्था और अनुपसर्ग अवस्था में उदाहरण रूप हैं । अर्थात् महावेदना के समय और अल्प वेदना के समय भी भगवान् सदा प्रशस्त निर्जरा वाले थे।
जो महावेदना वाले होते हैं, वे सभी महानिर्जरा वाले नहीं होते हैं। जैसे कि-छठी और सातवीं पृथ्वी के नैरयिक । इस बात को वस्त्र का उदाहरण देकर बतलाया गया है। जैसे-कर्दम रंग से रंगा हुआ वस्त्र, मुश्किल से धोया जाता है । उस पर लगे हुए धब्बे मुश्किल से छुड़ाये जाते हैं और उसे साफ कर उस पर चित्रादि मुश्किल से बनाये जा सकते हैं, उसी प्रकार जिन जीवों के कर्म, डोरी से मजबूत बांधे हुए सूइयों के समूह के समान, आत्मा के प्रदेशों के साथ गाढ़ बंधे हुए हैं, मिट्टी के चिकने बर्तन के समान सूक्ष्म कर्म स्कंधों के रस के साथ परस्पर गाढ सम्बन्ध वाले होने से जिनके कर्म दुर्भेद्य हैं, अर्थात् जो चिकने कर्म वाले हैं, रस्सी द्वारा मजबूत बांधकर आग में तपाई हुई सूइय जिम प्रकार परस्पर चिपक जाती हैं और वे किसी प्रकार से भी अलग नहीं हो सकती हैं, उसी प्रकार जो कर्म, परस्पर एकमेक हो गये हैं, ऐसे श्लिष्ट (निधत्त) कर्म, और जो कर्म वेदे बिना दूसरे किसी भी उपाय से क्षय नहीं किय जा सकते हैं, एसे खिलीभूत (निकाचित) कर्म-उस मलीन से मलीन वस्त्र की तरह दुर्विशोध्य है। ऐसे गाढ़ बंध चिक्कणीकृत निधत्त और निकाचित कर्म, उन नैरयिक जीवों के महावेदना के कारण होते हैं । किन्तु उस महा- . वेदना से उनको महानिर्जरा और महापर्यवसान नहीं होता।
शंका-यहां वेदना और निर्जरा का वर्णन चल रहा है । बीच में 'महापर्यवसान' का अप्रस्तुत कथन किस प्रकार किया गया है ?
समाधान-यहां महापर्यवसान का कथन अप्रस्तुत नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार वेदना और निर्जरा का परस्पर कार्य कारण भाव है, उसी प्रकार निर्जरा और पर्यवसान का भी परस्पर कार्य कारण भाव है। इसीलिये मूलपाठ में भी यह कहा गया है कि जो महानिर्जरा वाला नहीं होता, वह महापर्यवसान वाला भी नहीं होता । अतः यहां महा- . पर्यवसान का कथन अप्रस्तुत नहीं समझना चाहिये।
मूलपाठ में जो यह कहा गया है कि-जो 'महावेदना वाला होता है, वह महानिर्जरा वाला होता है,' यह कथन किसी एक विशिष्ट जीव, की अपेक्षा से समझना चाहिये, किन्तु नैरयिक आदि क्लिष्ट कर्म वाले जीवों की अपेक्षा नहीं।
मूलपाठ में जो यह कहा गया हैं कि 'जो महानिर्जरा वाला होता हैं, वह महावेदना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org