________________
९५४
भगवती सूत्र"शः ६. ३ वस्त्र और जीव की सादि सन्तिता
१२ प्रश्न-जहा णं भंते ! वत्थे साइए सपज्जवसिए, णो साइए अपजवसिए, णो अणाइए सपजवसिए, णो अणाइए अपज्जवसिए तहा णं जीवा णं किं साइया सपज्जवसिया चउभंगो-पुच्छा ? .
१२ उत्तर-गोयमा ! अत्थेगइया साइया सपज्जवसिया, चत्तारि वि भाणियव्वा ।
१३ प्रश्न-से केणटेणं? .१३ उत्तर-गोयमा ! णेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवा गइरागई पडुच्च साइया सपज्जवसिया, सिद्धा (सिद्ध) गई पडुच्च साइया अपज्जवसिया, भवसिद्धिया लदिध पडुच्च अणाइया सपनवसिया, अभवसिद्धिया संसारं पडुच्च अणाइया अपज्जवसिया, से तेणटेणं।
कठिन शब्दार्थ-गइरागइं-जाना आना, पडुच्च-अपेक्षा, लात-लब्धि-प्राप्ति ।
भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वस्त्र सादि सान्त है ? इत्यादि पूर्वोक्त रूप से चार भंग करके प्रश्न करना चाहिए ?
११ उत्तर-हे गौतम ! वस्त्र सादि सान्ट + । बाकी तीन भंगों का वस्त्र में निषेध करना चाहिए।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! जैसे वस्त्र सादि मान्त है, किन्तु सादि अनन्त नहीं है, अनादि सान्त नहीं है और अनादि अनन्त नहीं है, उसी प्रकार जीवों के लिए भी प्रश्न करना चाहिए;
हे भगवन् ! क्या जीव, सादि सान्त हैं, सादि अनन्त हैं, अनादि सान्त हैं, या अनादि अनन्त हैं ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org