Book Title: Bhagvati Sutra Part 02
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 438
________________ भगवती सूत्र-श. ६ उ. ३ वस्त्र और जीव की सादि सान्तता ९५५ १२ उत्तर-हे गौतम ! कितने ही जीव सादि सान्त हैं, कितने ही जीव सादि अनन्त हैं, कितने ही जीव अनादि सान्त हैं और कितने ही जीव अनादि अनन्त है। १३ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? १३ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव, गति आगति को अपेक्षा सादि सान्त है । सिद्ध गति की अपेक्षा सिद्ध जीव, सादि अनन्त हैं । लब्धि की अपेक्षा भवसिद्धिक जीव, अनादि सान्त है । संसार की अपेक्षा अभवसिद्धिक जीव, अनादि अनन्त हैं। विवेचन-नरकादि गति में गमन की अपेक्षा उसका सादिपन है और वहां से निकलने रूप आगमन की अपेक्षा उसकी सान्तता है । सिद्ध गति की अपेक्षा सिद्ध जीव, सादि अनन्त हैं। शंका-सिद्धों को सादि अनन्त कहा है, परन्तु भूतकाल में ऐसा कोई समय नहीं था जब कि सिद्ध-गति सिद्ध-जीवों से रहित रही हो। फिर उनमें सादिता कैसे घटित हो सकती है ? ममाधान-सभी सिद्ध सादि हैं। प्रत्येक सिद्ध ने किसी एक समय में भवभ्रमण का अंत करके सिद्धत्व प्राप्त किया है । अनन्त सिद्धों में से ऐसा एक भी सिद्ध नहीं-जो अनादि सिद्ध हो । इतना होते हुए भी सिद्ध अनादि हैं । सिद्धों का सद्भाव सदा से है । भूतकाल में ऐसा कोई समय नहीं था कि जब एक भी सिद्ध नहीं हो और सिद्धस्थान, सिद्धों से सर्वथा शून्य रहा हो तथा फिर कोई एक जीव सबसे पहिले सिद्ध हुआ हो । अतएव समूहापेक्षा सिद्धों का अनादिफ्न है । यही बात इसी सूत्र के प्रथम शतक उद्देशक ६ में + रोह अनगार के प्रश्न के उत्तर में बताई गई है। वहां सिद्धगति और सिद्धों को अनादि बतलाया है। जिस प्रकार काल अनादि है। काल, किसी भी समय शरीरों तथा दिनों और रात्रियों से रहित नहीं रहा । कौनसा शरीर और कौनसा दिन रात सर्व प्रथम उत्पन्न हुआ-यह जाना नहीं जा सकता, क्योंकि शरीरों और दिन-रात्रियों की आदि नहीं है । इसी प्रकार सिद्धों की भी आदि नहीं है। ऐसा कोई समय नहीं कि जब सिद्ध स्थान में कोई सिद्ध नहीं रहा हो । अनंतसिद्धों का सद्भाव वहां सदा से है। . + देखो प्रथम भाग पृ. २७० उत्तर २१७ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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