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भगवती सूत्र - श. ६ उ. ३ कर्मों के बंधक
होता, किन्तु केवल स्त्री, पुरुष, या नपुंसक का शरीर है, उसे 'नोस्त्री-नोपुरुष - नोनपुंसक' कहते हैं । वह अनिवृत्तिवाद संपरायादि गुणस्थानवर्ती होता है । इनमें से अनिवृत्तिबादरसंपराय और सूक्ष्म संपराय गुणस्थानवर्ती जीव, ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धक होता है, क्योंकि वह सप्तविध कर्म का बन्धक, या षड्विध कर्म का बंन्धक होता है । उपशांत मोहादि गुणस्थान-वर्ती (नोस्त्री-नोपुरुष - नोनपुंसक) जीव, ज्ञानावरणीय का अबन्धक होता है, क्योंकि वह तो एकविध ( वेदनीय) कर्म का बन्धक होता है । इसीलिए कहा है कि नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुं-. सक जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को भजना से बांधता है अर्थात् कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है । आयुष्य कर्म को स्त्रीवेदी, पुरुष वेंदी और नपुंसकवेदी जीव, कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है । इसका तात्पर्य यह है कि जब आयुष्य का बन्धकाल होता है, तब बान्धता है और जब आयुष्य का बन्ध-काल नहीं होता है, तब नहीं बान्धता है, क्योंकि एक भव में आयुष्य एक ही बार बन्धता है । नोस्त्री-नोपुरुष - नोनपुंसक जीव (स्त्री आदि वेद रहित जीव) तो अयुष्य को बांधता ही नहीं है, क्योंकि निवृत्तिबादर संपराय आदि गुणस्थानों में आयुबन्ध का व्यवच्छेद हो जाता है
२ संयतद्वार - प्रथम के चार संयम में अर्थात् सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्धि और सूक्ष्मसम्पराय इन चार संयम में रहने वाला संयत जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता है । यथाख्यात संयम में रहने वाला संयत जीव तो उपशांत मोहादि वाला होता है, इसलिये वह ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बांधता है । अतएव कहा गया है कि संयत जीव, ज्ञानावरणीय कर्म को कदाचित् बांधता है और कदांचित् नहीं बांधता है । असंयत अर्थात् मिथ्यादृष्टि आदि जीव और संयतासंयत अर्थात् पञ्चम गुणस्थानवर्ती देशविरत जीव, ये दोनों ज्ञानावरणीय कर्म बांधते हैं। नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत अर्थात् सिद्ध जीव, ज्ञानावरणीय कर्म नहीं बांधता है, क्योंकि उनके कर्म बंध का कोई कारण नहीं है ।संयत, असंयत और संयतासंयत, ये तीनों आयुष्य बंध काल में आयुष्य को बांधते हैं, दूसरे समय में (आयुष्य बंध काल के सिवाय अन्य समय में) आयुष्य नहीं बांधतें हैं । इसलिये इन तीनों के आयुष्य का बंध भजन्स से कहा गया है, अर्थात् कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते हैं । नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत अर्थात् सिद्ध जीव, आयुष्य नहीं बांधते हैं ।
१९ प्रश्न - णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं सम्मदिट्ठी बंधह
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