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भगवती सूत्र-श. ६ उ. १ जीव और करण
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वाला होता है। यह कथन भी प्रायिक समझना चाहिये। क्योंकि अयोगी केवली महानिर्जरा वाले तो होते हैं, परन्तु वे नियमा महावेदना वाले नहीं होते । अतएव इसमें भजना है । अर्थात् वे महावेदना वाले भी हो सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं ।
दूसरा दृष्टान्त एरण का दिया गया है। जिस प्रकार लोह के धन से महाशब्द और महाघोष के साथ निरन्तर एरण को कूटने पर भी उसके स्थूल पुद्गल नष्ट नहीं हो सकते, उसी प्रकार नैरयिक जीवों के भी गाढ़कृत आदि पाप कर्म दुष्परिशाटनीय होते हैं । खंजन रंग से रंगे हुए वस्त्र का दृष्टान्त देकर यह बतलाया गया है कि जिस प्रकार वह वस्त्र सविशोध्य (सरलता से साक.हो सकने वाला) होता है, उसी प्रकार स्थल तर स्कन्ध रूप (असार पुद्गल) श्लथ (मन्द) विपाक वाले सत्ता रहित और विपरिणामित (स्थितिघात और रस-घात के द्वारा विपरिणाम वाले ) कर्म भी शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं । अर्थात् ये कर्म सुविशोध्य होते हैं। जिनके कर्म ऐसे सुविशोध्य होते हैं, वे महानुभाव कैसी भी वेदना को भोगते हुए महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले होते हैं ।
जीव और करण
५ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! करणे पण्णते ?
५ उत्तर-गोयमा ! चविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे।
६ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! कइविहे करणे पण्णते ?
६ उत्तर-गोयमा ! चउविहे. पण्णत्ते, तं जहा-मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मरणे, एवं पंचिंदियाणं सव्वेसिं चउविहे करणे पण्णत्ते । एगिदियाणं दुविहे-कायकरणे य, कम्मकरणे य । विगलेंदियाणं तिविहे-वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे।
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