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भगवती सूत्र - श. ६ उ. १ वेदना और निर्जरा में वस्त्र का दृष्टांत
( गौतम स्वामी ने पूर्वोक्त प्रश्न का उत्तर दिया ) 'हे भगवन् ! उन दो वस्त्रों में से जो वस्त्र खञ्जन के रंग से रंगा हुआ वस्त्र है, वह सुधौततर, सुवाम्यतर और सुप्रतिकर्मतर है ।
( भगवान् ने फरमाया ) हे गौतम! इसी प्रकार श्रमण निर्ग्रन्थों के यथाबादर (स्थूलतर स्कन्ध रूप ) कर्म, शिथिलीकृत ( मन्द विपाक वाले) निष्ठितकृत (सत्ता रहित किये हुए) विपरिणामित (विपरिणाम वाले) होते हैं । इसलिये वे शीघ्र ही विध्वस्त हो जाते हैं। जिस किसी वेदना को वेदते हुए श्रमण निर्ग्रन्थ, महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले होते हैं ।
हे गौतम ! जैसे कोई पुरुष, सूखे घास के पूले को, धधकती हुई अग्नि में डाले, तो क्या वह शीघ्र ही जल जाता है ?
( गौतम स्वामी ने उत्तर दिया ) 'हाँ, भगवन् ! कह तत्क्षण जल जाता है ।' (भगवान् ने फरमाया ) हे गौतम ! इसी तरह श्रमण निर्ग्रन्थों के यथाबादर (स्थूलतर स्कन्ध रूप ) कर्म शीघ्र विध्वस्त हो जाते हैं । इसलिये श्रमण निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले होते हैं ।
अथवा जैसे कोई पुरुष अत्यन्त तपे हुए लोहे के गोले पर पानी की बिन्दु डा, तो वह यावत् तत्क्षण विनष्ट हो जाती है । इसी प्रकार हे गौतम ! श्रमण निर्ग्रन्थों के कर्म शीघ्र विध्वस्त हो जाते हैं । इसलिये ऐसा कहा गया हैं-जो महावेदना वाला होता है, वह महानिर्जरा वाला होता है । यावत् प्रशस्त निर्जरा वाला होता है ।'
विवेचन - उपसर्ग आदि द्वारा जो विशेष पौड़ा पैदा होती है, वह 'महावेदना' कहलाती हैं और जिसमें कर्मों का विशेष रूप से क्षय हो, वह 'महानिर्जरा' कहलाती है । इन दोनों का परस्पर अविनाभाव सम्बन्ध बतलाने के लिये पहला प्रश्न किया गया है । अर्थात् 'क्या जहां महावेदना होती है, वहां महानिर्जरा होती है' और 'जहाँ महानिर्जरा होती है कहां महावेदना होती है ?' दूसरा प्रश्न यह किया गया है कि 'महावेदना वाला और अल्प वेदना वाला, क्या इन दोनों में प्रशस्त निर्जरा वाले उत्तम है ?' प्रथम प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को जिस समय महाकष्ट पड़े थे, उस समय के भगवान्
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