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भगवती सूत्र --श. ६ उ. ३ महाकर्म और अल्पकर्म
शतक उद्देशक ३
बहुकम्म वत्थे पोग्गल पओगला वीससा य साइए । कम्महि-स्थि-संजय सम्मदिट्टी य सण्णी य ॥ १ ॥ भविए दंसण- पज्जत्त भासय-परि णाण- जोगे य । उवओगा-ऽऽहारग- सुहुम-चरिम - बंधे य अप्प बहुं ॥ २ ॥
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कठिन शब्दार्थ –पयोगसा - जीव के प्रयत्न से, वीससा - स्वाभाविक ।
भावार्थ - बहुकर्म, वस्त्र में प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से पुद्गल, सादि ( आदि सहित ) कर्मस्थिति, स्त्री, संयत, सम्यग्दृष्टि, संज्ञी, भव्य, दर्शन, पर्याप्त, भाषक, परित्त, ज्ञान, योग, उपयोग, आहारक, सूक्ष्म, चरम, बंध, और अल्पबहुत्व, इतने विषयों का कथन इस उद्देशक में किया जायेगा ।
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विवेचन – दूसरे उद्देशक में आहार की अपेक्षा से पुद्गलों का विचार किया गया था, अब इस तीसरे उद्देशक में बन्धादि की अपेक्षा से पुद्गलों का विचार किया जाता है । इस उद्देशक में जिन विषयों का वर्णन किया गया है, उनका नाम निर्देश उपर्युक्त दो संग्रह गाथाओं में किया गया है।
महाकर्म और अल्पकर्म
१ प्रश्न - से णूणं भंते! महाकम्मस्स, महाकिरियरस, महासवस्स, महावेयणस्स, सव्वओ पोग्गला बज्झंति, सओ पोग्गला चिजति; सव्वओ पोग्गला उवचिज्जति, सया समियं पोग्गला
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