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भगवंसी सूत्र - श. ६ उ. २
शतक उद्देशक २
- रायगिहं णयरं जाव - एवं वयासी - आहारुद्देसओ जो पण्णवणाए सो सव्वो निरवसेसो यव्वो ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति
॥ छट्टस बीओ उद्देसो सम्मत्तो ॥
कठिन शब्दार्थ - आहारुद्देसओ - प्रजापना सूत्र के २८ वे आहार पद का पहला उद्देशक ।
भावार्थ - राजगृह नगर में यावत् भगवान् ने इस प्रकार फरमाया। यहां प्रज्ञापना सूत्र के २८ वें आहार पद का सम्पूर्ण प्रथम उद्देशक कहना चाहिये । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
विवेचन - पहले उद्देशक के अन्त में वेदना वाले जीवों का कथन किया गया है । वे जीव, आहार करने वाले भी होते हैं । इसलिये इस दूसरे उद्देशक में आहार का वर्णन किया जाता है । जीवों के आहार सम्बन्धी वर्णन के लिये प्रज्ञापना सूत्र के २८ वें आहार पद के प्रथम उद्देशक की भलामण दी गई है । उसका सर्व प्रथम प्रश्नोत्तर इस प्रकार हैहे भगवन् ! नैरयिक जीव, क्या सचित्ताहारी हैं, अचित्ताहारी हैं, या मिश्र आहारी हैं ?
उत्तर - हे गौतम ! नैरयिक जीव, सचित्ताहारी नहीं हैं, मिश्र आहारी नहीं हैं, . वे अचित्ताहारी हैं ।
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इत्यादि रूप से विविध प्रश्नोत्तरों द्वारा जीवों के आहार के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है । विशेष जिज्ञासुओं को इस विषयक वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के २८ वें पद के प्रथम उद्देशक में देखना चाहिये ।
॥ इति छठे शतक का दूसरा उद्देशक समाप्त ॥
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