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________________ ९४४ भगवंसी सूत्र - श. ६ उ. २ शतक उद्देशक २ - रायगिहं णयरं जाव - एवं वयासी - आहारुद्देसओ जो पण्णवणाए सो सव्वो निरवसेसो यव्वो । * सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॥ छट्टस बीओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ - आहारुद्देसओ - प्रजापना सूत्र के २८ वे आहार पद का पहला उद्देशक । भावार्थ - राजगृह नगर में यावत् भगवान् ने इस प्रकार फरमाया। यहां प्रज्ञापना सूत्र के २८ वें आहार पद का सम्पूर्ण प्रथम उद्देशक कहना चाहिये । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । विवेचन - पहले उद्देशक के अन्त में वेदना वाले जीवों का कथन किया गया है । वे जीव, आहार करने वाले भी होते हैं । इसलिये इस दूसरे उद्देशक में आहार का वर्णन किया जाता है । जीवों के आहार सम्बन्धी वर्णन के लिये प्रज्ञापना सूत्र के २८ वें आहार पद के प्रथम उद्देशक की भलामण दी गई है । उसका सर्व प्रथम प्रश्नोत्तर इस प्रकार हैहे भगवन् ! नैरयिक जीव, क्या सचित्ताहारी हैं, अचित्ताहारी हैं, या मिश्र आहारी हैं ? उत्तर - हे गौतम ! नैरयिक जीव, सचित्ताहारी नहीं हैं, मिश्र आहारी नहीं हैं, . वे अचित्ताहारी हैं । • इत्यादि रूप से विविध प्रश्नोत्तरों द्वारा जीवों के आहार के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है । विशेष जिज्ञासुओं को इस विषयक वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के २८ वें पद के प्रथम उद्देशक में देखना चाहिये । ॥ इति छठे शतक का दूसरा उद्देशक समाप्त ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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