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भगवती सूत्र-श. ६ उ. १ जीव और करण
-ओरालियसरीरा सव्वे सुभाऽसुभेणं मायाए, देवा सुभेणं सायं ।
कठिन शब्दार्थ-करणे-करण-जिन से क्रिया की जाय, एवामेव-इसी तरह, वेमायाए-विमात्रा से-विविध प्रकार से, ओरालियसरीरा-औदारिक शरीर वाले।
भावार्थ-५ प्रश्न-ले भगवन ! करण कितने प्रकार के कहे गये हैं?
५ उत्तर-हे गौतम ! करण चार प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार है-मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण ।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार के करण कहे गये हैं।
६ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीवों के चार प्रकार के करण कहे गये हैं। यथा-मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण । सभी पञ्चेन्द्रिय जीवों के ये चार प्रकार के करण होते हैं। एकेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार के करण होते हैं। यथा-कायकरण और कर्मकरण । विकलेन्द्रिय जीवों के तीन प्रकार के करण होते हैं । यथा-वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीव, करण से असातावेदना वेदते हैं, या अकरण से ?
७ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक जीव, करण से असातावेदना वेदते हैं, परन्तु अकरण से नहीं वेदते हैं।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण हैं ?
८ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीवों के चार प्रकार के करण कहे गये हैं । यथा-मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण । ये चार प्रकार के अशुभ करण होने से नरयिक जीव, करण द्वारा असाता वेदना वेदते हैं, परन्तु अकरण द्वारा असाता वेदना नहीं वेवते हैं।
९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या असुरकुमार देव, करण से साता वेदना वेदते है, या अकरण से ?
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