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________________ ९४० भगवती सूत्र-श. ६ उ. १ जीव और करण -ओरालियसरीरा सव्वे सुभाऽसुभेणं मायाए, देवा सुभेणं सायं । कठिन शब्दार्थ-करणे-करण-जिन से क्रिया की जाय, एवामेव-इसी तरह, वेमायाए-विमात्रा से-विविध प्रकार से, ओरालियसरीरा-औदारिक शरीर वाले। भावार्थ-५ प्रश्न-ले भगवन ! करण कितने प्रकार के कहे गये हैं? ५ उत्तर-हे गौतम ! करण चार प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार है-मन-करण, वचन-करण, काय-करण और कर्म-करण । ६ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार के करण कहे गये हैं। ६ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीवों के चार प्रकार के करण कहे गये हैं। यथा-मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण । सभी पञ्चेन्द्रिय जीवों के ये चार प्रकार के करण होते हैं। एकेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार के करण होते हैं। यथा-कायकरण और कर्मकरण । विकलेन्द्रिय जीवों के तीन प्रकार के करण होते हैं । यथा-वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण। ७ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीव, करण से असातावेदना वेदते हैं, या अकरण से ? ७ उत्तर-हे गौतम ! नैरयिक जीव, करण से असातावेदना वेदते हैं, परन्तु अकरण से नहीं वेदते हैं। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण हैं ? ८ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक जीवों के चार प्रकार के करण कहे गये हैं । यथा-मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण । ये चार प्रकार के अशुभ करण होने से नरयिक जीव, करण द्वारा असाता वेदना वेदते हैं, परन्तु अकरण द्वारा असाता वेदना नहीं वेवते हैं। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या असुरकुमार देव, करण से साता वेदना वेदते है, या अकरण से ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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