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________________ भगवती सूत्र - श. ६ उ. १ वेदना और निर्जरा की सहचरता ९४१ ९ उत्तर-हे गौतम ! वे करण से सातावेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं। १० प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? १० उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमारों के चार प्रकार के करण होते हैं। यथा-मनकरण, वचनकरण, कायकरण और कर्मकरण । इनके शभ करण होने से असुरकुमार देव, करण द्वारा साता वेदना वेदते हैं, परन्तु अकरण द्वारा नहीं वेदते हैं । इस प्रकार स्तनितकुमारों तक समझ लेना चाहिये। ११ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक जीव, करण द्वारा वेदना वेदते हैं, या अकरण द्वारा ? ११ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव, करण द्वारा वेदना वेदते हैं, अकरण द्वारा नहीं। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनके शुभाशुभ करण होने से ये करण द्वारा विमात्रा से (विविध प्रकार से ) वेदना वेदते हैं । अर्थात् कदाचित् सुखरूप और कदाचित् दुःखरूप वेदना वेदते हैं, अकरण द्वारा नहीं। औदारिक शरीर वाले सभी जीव, अर्थात् पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, तियंच पञ्चेन्द्रिय और मनुष्य ये सब शुभाशुभ करण द्वारा विमात्रा से वेदना वेदते हैं । अर्थात् कदाचित् सुखरूप और कदाचित् दुःखरूप वेदना वेदते हैं ! , देव शुभकरण द्वारा साता वेदना वेदते हैं। विवेचन-पहले वेदना के विषय में विचार किया गया है । वह वेदना करण से होती है । इसलिये इस प्रकरण में करण सम्बन्धी विचार किया जाता है । करण चार प्रकार के कहे गये हैं। मन सम्बन्धी करण, वचन सम्बन्धी करण, काय सम्बन्धी करण और कर्म विषयक करण । कर्म के बन्धन, संक्रमण आदि में निमित्तभूत जीव के वीर्य को 'कर्म करण' कहते हैं । विमात्रा का अर्थ -किसी समय साता वेदना और किसी समय असाता वेदना। वेदना और निर्जरा की सहचरता १२ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं महावेयणा महाणिजरा, महा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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