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भगवती मूत्र-श. ५ उ. ७ बेइंद्रिय आदि का परिग्रह
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किये हैं। उन्होंने उज्झर (पर्वत से गिरने वाला पानी का झरना) निर्झर (पानी का टपकना)चिल्लल (कीचड़ मिश्रित जल स्थान) पल्लल (आनन्ददायक जल स्थान) वप्रोण (क्यारा वाला जल स्थान अथवा तट वाला प्रदेश) परिगृहीत किये हैं। उन्होंने अगड (कुआ) तडाग (तालाब) द्रह (जलाशय) नदी, वापी (चतुष्कोण बावडी) पुष्करिणी (गोल बावडी अथवा कमलों युक्त बावडी) दीपिका (हौज अथवा लम्बी बाक्डो) गुञ्जालिका । टेढ़ी बावडी) सरोवर, सरपंक्ति (सरोवर श्रेणी) सरसरपंक्ति (एक तालाब से दूसरे तालाब में पानी जाने का नाला) बिलपंक्ति (बिलश्रेणी) परिगृहीत किये हैं। आराम (दम्पत्ति आदि के क्रीड़ा करने का स्थान-माधवी लता मण्डप) उद्यान (सार्वजनिक बगीचा) कानन (गांव के पास का वन) वन (गांव से दूर के वन) वनखण्ड ( जहाँ एक जाति के वृक्ष हो ऐसे वन) वनराजि (वृक्षों की पंक्ति) ये सब परिगृहीत किये हैं। देव कुल (मन्दिर) आश्रम (तापसादि का आश्रम) प्रपा (प्याऊ) स्तूभ (खम्भा) खाई (ऊपर चौडी और नीचे संकडी खोदी हुई खाई) परिखा (ऊपर और नीचे समान खोदी हुई खाई) ये सबै परिगृहीत किये हैं। प्राकार (किला) अट्टालक (किले पर बनाया हुआ एक प्रकार का मकान अथवा झरोखा) चरिका (घर और किले के बीच में हाथी आदि के जाने का मार्ग) द्वार (खिड़की) और गोपुर (नगर का दरवाजा) ये सब परिगहीत किये हैं। प्रासाद ( देव-भवन या राज-भवन ) घर ( सामान्य घर ) सरण (झोंपड़ा) लयन (गुहा गृह-पर्वत खोद कर बनाया हुआ घर) आपण-दूकान, ये सब परिगहीत किये है। शृंगाटक (सिघाडे के आकार का मार्ग-त्रिकोण मार्ग) त्रिक-जहां तीन मार्ग मिलते हैं ऐसा स्थान, चतुष्क-जहां चार मार्ग मिलते हैं ऐसा स्थान, चत्वर-जहां सब मार्ग मिलते हैं ऐसा स्थान अर्थात चौक चतुर्मुख-चार दरवाजे वाला मकान, महापय (महामार्ग-राजमार्ग) ये सब परिग्रहीत किये हैं। शकट-गाडी, रथ, यान-सवारी, युग्य (जम्यान-दो हाथ प्रमाण एक प्रकार की पालखी अथवा रिक्शागाडी) गिल्ली-अम्बाडी, थिल्ली-घोडे का पलान, शिविका–पालखी या डोली, स्यन्दमानिका-(म्याना,
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