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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ९ नैरयिकादि का समय ज्ञान
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पदार्थों के ज्ञान में निमित्त होने से शुभ पुद्गल कहे गये हैं । जब रवि किरणादि का सम्पर्क नहीं होता, तब पदार्थ ज्ञान का अजनक होने से अशुभ पुद्गल कहे गये हैं।
नैरयिकादि का समय ज्ञान
११ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! णेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पण्णायए, तं जहा-समया इ वा, आवलिया इ वा, जाव उस्सप्पिणी इ वा, ओसप्पिणी इ वा ? __ ११ उत्तर-णो इणटे समटे ।
१२ प्रश्न-से केणटेणं जाव-समया इ वा, आवलिया इ वा, उस्सप्पिणी इ वा, ओसप्पिणी इ वा ? ..
.१२ उत्तर-गोयमा ! इहं तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, इहं तेसिं एवं पण्णायए, तं जहा-समया इ वा, जाव-ओसप्पिणी इ वा, से तेणटेणं जाव-णों एवं पण्णायए, तं जहा-समया इ वा, जावउस्सप्पिणी इ वा, एवं जाव-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं ।
कठिन शब्दार्थ-तत्थगयाणं-वहां गये हुए-वहां रहे हुए, पण्णापए-ज्ञान । - भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नरक में रहे हुए नैरयिक जीवों को सगय, आवलिका, यावत् उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल का ज्ञान है ? __ ११ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् वहां रहे हए नरपिक जीव, समय आदि को नहीं जानते हैं।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? नरक में रहे हए नैर
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