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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ९ नैरयि कादि का समय ज्ञान
यिक समय, आवलिका, यावत् उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी को क्यों नहीं जानते हैं ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! यहां समय आदि का मान और प्रमाण है और यहाँ समय यावत् अवसर्पिणी का ज्ञान किया जाता है, किन्तु नरक में नहीं है, इस कारण से नरक में रहे हुए नरयिकों को समय, आवलिका यावत् उत्सपिणी, अवसर्पिणी का ज्ञान नहीं होता। इसी प्रकार यावत् पञ्चेन्द्रिय तियंच योनि तक कहना चाहिये।
१३ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! मणुस्साणं इहगयाणं एवं पण्णायह तं जहा-समया इ वा, जाव-उस्सप्पिणी इ वा ?
१३ उत्तर-हंता, अस्थि । १४ प्रश्न-से केणटेणं?
१४ उत्तर-गोयमा ! इहं तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, एवं पण्णायइ, तं जहा-समया इ वा, जाव-ओसप्पिणी इ वा, से तेण
टेणं।
-वाणमंतर-जोइस-चेमाणियाणं जहा रइयाणं । भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या यहां मनुष्य लोक. में रहे हुए मनुष्यों को समय यावत् अवसपिणी का ज्ञान है ?
१३ उत्तर-हाँ गौतम ! है। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
१४ उत्तर-हे गौतम ! यहां समय आदि का मान और प्रमाण है, इसलिये समय यावत् अवसर्पिणी का ज्ञान है । इस कारण से ऐसा कहा गया है कि मनुष्य लोक में रहे हुए मनुष्यों को समय आदि का ज्ञान है।
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