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भगवती सूत्र-- श. ५ उ. ९ देवलोक
१७ उत्तर-गोयमा ! चउव्विहा देवलोगा पण्णत्ता, तं जहाभवणवासी-वाणमंतर-जोइसिय चेमाणियभेएणं । भवणवासी दसविहा, वाणमंतरा अट्टविहा, जोइसिया पंचविहा, वेमाणिया दुविहा । गाहा-किमियं रायगिहं ति य, उज्जोए अंधयार-समए य,
पासंतिवासिपुच्छा, राइंदिय देवलोगा य ।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति *
॥ पंचमसए नवमो उद्देसो सम्पत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-पासंतिवासिपुच्छा-भगवान् पार्श्वनाथ के अन्तेवासी अर्थात् शिष्यों द्वारा प्रश्न ।
भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! कितने प्रकार के देवलोक कहे गये हैं ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! चार प्रकार के देवलोक कहे गये हैं। यथाभवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक । इनमें भवनवासी दस प्रकार के हैं। वाणव्यन्तर आठ प्रकार के हैं । ज्योतिषी पांच प्रकार के हैं और वैमानिक दो प्रकार के हैं।
इस उद्देशक को संग्रह गाथा का अर्थ इस प्रकार है-राजगृह नगर क्या है ? दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होने का क्या कारण है ? समय आदि काल का ज्ञान किन जीवों को होता है और किन जीवों को नहीं होता। रात्रि दिवस के परिमाण के विषय में श्री पाश्र्वापत्य स्थविर भगवंतों का प्रश्न । देवलोक विषयक प्रश्न । इतने विषय इस नौवें उद्देशक में कहे गये हैं।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। है भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
विवेचन -पहले के प्रकरण में देवलोक में जाने सम्बन्धो कथन किया गया था। अतः यहां भी देवलोकों से सम्बन्धित कथन किया जाता है।
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