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भगवती मूत्र-ग. ५ उ. ५ देवलोक
देव चार प्रकार के हैं। उनमें से भवन वामी देवों के दस भेद इस प्रकार हैं-१ असुरकुमार, २ नागकुमार, ३ मुवर्णकुमार, ४ विद्युतकुमार, ५ अग्निकुमार, ६ द्वीपकुमार, ७ उदधिकुमार, ८ दिशाकुमार, ९ पवन कुमार और १० स्तनितकुमार । वाणव्यन्तर देवों के आठ भद इस प्रकार हैं-१ पिशाच, २ भूत, ३ यक्ष ४ राक्षस, ५ किन्नर, ६ किम्पुरुष, ७ महोरग और ८ गन्धर्व । ज्योतिषी देवों के पांच भेद इस प्रकार हैं-१ चन्द्र, २ सूर्य, ३ ग्रह, ४ नक्षत्र और ५ तारा। वैमानिक देवों के दो भद हैं-१ कल्पोपपन्न और २ कल्पातीत । जिन देवों में छोटे बड़े का भेद होता है, वे 'कल्पोपपन्न' देव कहलाते हैं । बारहवें देवलोक तक के देव कल्पोपपन्न हैं । जिन देवों में छोटे बड़े का भेद नहीं हैं, किन्तु सभी अहमिन्द्र' हैं, वे 'कल्पातीत' कहलाते हैं । जैसे-नव ग्रैवेयक और पांच अनुत्तर विमानवासी देव ।
॥ इति पांचवें शतक का नवमा उद्देशक समाप्त ॥
शतक ५ उद्देशक १०
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी, जहा पढमिल्लो उद्देसओ तहा णेयव्वो एसो वि, णवर चंदिमा भाणियव्वा ।
॥ पंचमसए दसमो उद्देसो सम्मत्तो॥
॥ पंचमं सयं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ-चंदिमा–चन्द्रमा । . भावार्थ-उस काल उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। जैसे प्रथम उद्देशक कहा है, उसी प्रकार यह उद्देशक भी कहना चाहिए । विशेषता यह है कि यहाँ 'चन्द्रमा' कहना चाहिए।
विवेचन-नववे उद्देशक के अन्त में देवों का कथन किया गया है । 'चन्द्रमा' ज्योतिषी । देव विशेष है। इसलिए इस दसवें उद्देशक में चन्द्रमा सम्बन्धी वक्तव्यता कही जाती है।
जिस प्रकार पांचवें शतक का पहला उद्देशक 'रवि' प्रश्नोत्तर विषयक कहा गया है, ।
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