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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ८ निग्रंथी पुत्र अनगार के प्रश्न
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शतक ५ उद्देशक ८
निग्रंथी पुत्र अनगार के प्रश्न
तेणं कालेणं तेणं समएणं, जाव-परिसा पडिगया । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी णारयपुत्ते णामं अणगारे पगइभदए, जाव-विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं संमणस्स भगवओ महावीरस्स जाव-अंतेवासी णियंठिपुत्ते णामं अणगारे पगइभद्दए, जाव-विहरइ; तएणं से णियंठिपुत्ते अणगारे जेणामेव णारयपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता णारयपुत्तं अणगार एवं वयासी
कठिन शब्दार्थ-जेणामेव-जहां, उवागच्छइ-आये ।
भावार्थ--उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे । परिषद् दर्शन के लिये गई, यावत् धर्मोपदेश श्रवण कर वापिस लौट आई । उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के अन्तेवासी नारदपुत्र नाम के अनगार थे। वे प्रकृति भद्र थे, यावत् विचरते थे।
___ उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के अन्तेवासी निग्रंथीपुत्र नामक अनगार थे । वे प्रकृति से भद्र थे, यावत् विचरते थे। किसी समय निग्रंथीपुत्र अनगार, नारदपुत्र अनगार के पास आये और निग्रंथीपुत्र ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार पूछा
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