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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ७ हेतु अहेतु :
अज्ञान मरण मरता है। ___ ५ पांच अहेतु कहे गये हैं। यथा-अहेतु को जानता है, यावत् अहेतु युक्त केवलिमरण मरता है ।
६ पांच अहेतु कहे गये हैं । यथा--अहेतु से जानता है। यावत् अहेतु से केवलिमरण मरता है।
७ पांच अहेतु कहे गये हैं । यथा-अहेतु को नहीं जानता है, यावत् अहेतु यक्त छद्मस्थमरण मरता है।
८ पांच अहेतु कहे गये हैं। यथा-अहेतु से नहीं जानता हैं, यावत् अहेतु से छद्मस्थमरण मरता है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
विवेचन-हेतुओं को बतलाने के लिये आठ सूत्र कहे गये हैं। उनमें से चार सूत्र छद्मस्थ की अपेक्षा से कहे गये हैं और आगे के चार सूत्र केवली (सर्वज्ञ) की अपेक्षा कहे गये हैं । साध्य का निश्चय करने के लिये साध्याविनाभूत कारण को 'हेतु' कहते हैं । जैसे कि-दूर से धूम को देखकर वहां अग्नि का ज्ञान करना । इस प्रकार के हेतु को देखकर छमस्थ पुरुष अनुमान द्वारा ज्ञान करता है । केवली प्रत्यक्ष ज्ञानी होने के कारण उनके लिये हेतु (अनुमान प्रमाण) की आवश्यकता नहीं है। पहले के चार सूत्रों में से पहला और दूसरा सूत्र सम्यग्दृष्टि छ अस्थ की अपेक्षा है, तथा तीसरा और चौथा सूत्र मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा से है । सम्यग्दृष्टि छमस्थ का मरण हेतु पूर्वक होता है, किन्तु उसका अज्ञान मरण नहीं होता । मिथ्यादृष्टि का मरण अज्ञान मरण होता है । केवली का मरण निर्हेतुक होता है।
___ हेतु को हेतु द्वारा, अहेतु को और अहेतु द्वारा इत्यादि रूप से आठ सूत्र कहे गये हैं । भिन्न भिन्न क्रिया की अपेक्षा से यहां पांच हेतु और पांच अहेतु कहे गये हैं । इन आठों सूत्रों का गूढार्थ तो बहुश्रुत महापुरुष ही जानते हैं । +
॥ इति पांचवें शतक का सातवां उद्देशक समाप्त ॥ + इन आठ सूत्रों के विषय में टीकाकार श्री अभयदेव सूरि ने लिखा है-“गमनिकामात्रमेवेदम् । अष्टानामप्येषां सूत्राणां भावार्थ तु बहुश्रना: विदन्ति"।।
अर्थात यहाँ हेतुओं का अर्थ मात्र शब्दार्थ की दृष्टि से किया गया है। इनका वास्तविक भावार्य तो बहुश्रुत ही जानते है।
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