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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ७ हेतु अहेतु
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सुख पालकी) ये सब परिगृहीत किये हैं। लौही (लोहे का एक बर्तन विशेष) लोहकड़ाह (लोहे की कड़ाही) कडुच्छक (कुड़छी) ये सब परिगृहीत किये हैं। भवन परिगृहीत किये हैं । देव, देवी, मनुष्य, मनुष्यिनी (स्त्री) तिर्यञ्च योनिक, तिर्यञ्चिनी, आसन, शयन, खण्ड (टुकड़ा) भाण्ड (बर्तन) सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये हैं। इस कारण से पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक जीव, आरंभ और परिग्रह सहित हैं। किन्तु अनारंभी और अपरिग्रही नहीं हैं।
__जिस प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक जीवों के विषय में कहा, उसी प्रकार मनुष्यों के लिये भी कहना चाहिये। जिस प्रकार भवनपति देवों के विषय में कहा, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों के विषय में भी कहना चाहिये।
विवेचन-यहाँ चौबीस ही दण्डकों के विषय में आरंभ और परिग्रह सम्बन्धी प्रश्नोत्तर किये गये हैं । प्रत्याख्यान न करने के कारण एकेंद्रिय आदि जीव भी आरम्भ परिग्रह से सहित हैं।
हेतु अहेतु
१-पंच हेऊ पण्णता, तं जहा-हेउं जाणइ, हेउं पासइ, हेर्ड बुज्झइ, हेउं अभिसमागच्छइ, हेउं छउमत्थमरणं मरइ।
२-पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-हेउणा जाणई, जाव-हेउणा ' छउमत्थमरणं मरइ।
३-पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-हेर्ड ण जाणइ जाव-हेडं अण्णाणं मरणं मरइ।
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