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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ७ परमाणु पुद्गलादि का अन्तर काल
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स्कन्धादि रूप में परिणत हो जाय, तो वह कितने काल बाद वापिस परमाणुपन को प्राप्त कर सकता है ?
२१ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्येय काल का अन्तर होता है।
२२ प्रश्न-हे भगवन ! द्विप्रदेशी स्कन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ?
२२ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल का अन्तर होता है । इसी तरह यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक कहना चाहिये।
. २३ प्रश्न-हे भगवन् ! एक प्रदेशावगाढ़ सकंप पुद्गल का अन्तर कितने काल का होता है, अर्थात् एक आकाश प्रदेश में स्थित सकंप पुद्गल अपना कंपन बन्द करे, तो फिर उसे वापिस कंपन करने में कितना समय लगता है।
२३ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्येय काल का अन्तर होता है । इसी तरह यावत् असंख्य प्रदेशावगाढ़ स्कन्ध तक कहना चाहिये।
२४ प्रश्न-हे भगवन् ! एक प्रदेशावगाढ़ निष्कंप पुद्गल का अन्तर कितने काल का होता है ? अर्थात् निष्कंप पुद्गल अपनी निष्कपता छोड़कर फिर वापिस कितने काल बाद निष्कपता प्राप्त कर सकता है ?
२४ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका का असंख्येय भाग का अन्तर होता है। इसी तरह यावत् असंख्य प्रदेशावगाढ़ स्कन्ध तक समझ लेना चाहिये। वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, सूक्ष्मपरिणत और बादर परिणत के लिये जो उनका संचिटणा काल (स्थिति काल) कहा गया है, वही उनका अन्तर काल समझना चाहिये।
२५ प्रश्न-सदपरिणयस्स णं भंते ! पोग्गलस्स अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ?
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