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भगवती सूत्र - श. ५ उ. ७ परमाणु पुद्गलादि का अन्तर काल
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२६ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक समय. और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग का अन्तर होता है।
२७ प्रश्न-हे भगवन् ! इन द्रव्यस्थानायु, क्षेत्रस्थानायु, अवगाहनास्थानायु और भावस्थानायु, इन सब में कौन किस से कम, ज्यादा, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
२७ उत्तर-हे गौतम ! सब से थोड़ा क्षेत्रस्थानायु है, उससे अवगाहनास्थानायु असंख्य गुणा है, उससे द्रव्यस्थानायु असंख्य गुणा है और उससे भावस्थानायु असंख्य गुणा है।
गाथा का अर्थ इस प्रकार है-क्षेत्र, अवगाहना, द्रव्य और भाव स्थानायु, इनका अल्पबहुत्व कहना चाहिये। इनमें क्षेत्र स्थानायु सबसे अल्प है और बाकी तीन स्थान. क्रमशः असंख्य गुणा है।
विवेचन-एक परमाणु अपना परमाणुपन छोड़ कर वापिस दूसरी बार परमाणुपन को प्राप्त हो, इसके बीच का काल 'स्कन्ध सम्बन्ध काल' कहलाता है । वह जघन्य एक समय का है और उत्कृष्ट असंख्यात काल का है । द्विप्रदेशी स्कन्ध अपना द्विप्रदेशौ स्कन्धपन छोड़कर दूसरे स्कन्ध रूप में अथवा परमाणु रूप में परिणत्त होने का जो काल हैं, वह 'अन्तर काल' है । वह अन्तर काल अनन्त है। क्योंकि बाकी सब स्कन्ध अनन्त है और उन प्रत्येक स्कन्ध की उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात काल है । - जो निष्कंप का काल है वह सकंप का अन्तरकाल है। इसलिये कहा गया है कि सकंप का उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात काल है । सकंप का जो काल है, वह निष्कंप का अन्तर काल है । इसलिये यह कहा गया है कि निष्कंप का उत्कृष्ट अन्तर काल, आवलिका का असंख्यातवां भाग है । एक गुण कालत्वादि का अन्तर एक गुण कालत्वादि के काल के समान हैं, किन्तु द्विगुण कालत्वादि की अमन्तता के कारण उसका अन्तर अनन्त काल का नहीं है । सूक्ष्मादि परिणतों का अन्तर काल, उनके अवस्थान काल के समान है। क्योंकि एक का जो अवस्थान काल है, वह दूसरे का अन्तर काल है । यह असंख्येय काल का होता ।
है।
पुद्गल द्रव्य का परमाणु, द्विप्रदेशी स्कन्ध आदि रूप से रहना 'द्रव्यस्थानायु' कह- . लाता है । एक प्रदेशादि क्षेत्र में पुद्गलों के अवस्थान को 'क्षेत्रस्थानायु' कहते हैं । इसी
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