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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ७ परमाणु पुद्गलादि अछेद्य
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गइए णो छिज्जेज वा णो भिज्जेज वा एवं अगणिकायस्स मज्झं. मझेणं तहिं णवरं 'झियाएज' भाणियव्वं, एवं पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झमझेणं, तहिं 'उल्ले सिया, एवं गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्वं आगच्छेजा, तहिं विणिहायं आवज्जेजा, उदगावत्तं वा उदगबिंदु वा ओगाहेजा से णं तत्थ परियावज्जेजा।
कठिन शब्दार्थ-असिधारं-तलवार की धार, खुरधारं-उस्तरे की धार, छिज्जेज्जछेदन होता हैं, भिज्जेज्ज-भेदन होता है, खलु-निश्चय ही, सत्थं कमइ-शस्त्र क्रमण, झियाएज्ज-जलता है, उल्ले-गीला होना।
भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या परमाणु पुद्गल, तलवार की धार * या क्षुर-धार (उस्तरे को धार) पर रह सकता है ?
५ उत्तर-हाँ, गौतम ! रह सकता है।
६ प्रश्न-हे भगवन् ! उस धार पर रहा हुआ परमाणु पुद्गल, क्या छिन्न भिन्न होता है ?
६ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। परमाणु पुद्गल पर शस्त्र का आक्रमण नहीं हो सकता । इसी तरह यावत् असंख्य प्रदेशी स्कन्ध तक समझ लेना चाहिये । अर्थात् एक परमाणु यावत् असंख्य प्रदेशी स्कन्ध, शस्त्र द्वारा छिन्न भिन्न नहीं होता।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या अनन्त प्रदेशी स्कन्ध, तलवार की धार पर या क्षुर धार पर रह सकता है ?
७ उत्तर-हाँ, गौतम ! रह सकता है।
८ प्रश्न-क्या तलवार की धार पर या क्षुर को धार पर रहा हुआ अनन्त प्रदेशी स्कन्ध, छिन्न भिन्न होता है ? ।
८ उत्तर-हे गौतम ! कोई अनन्त प्रदेशी स्कन्ध छिन्न भिन्न होता है और कोई नहीं होता।
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