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भगवती सूत्र--- श. '५ उ. ६ आधाकर्मादि आहार का फल
(प्रकर्ष युक्त) कर्कश (कर्कश पदार्थ के समान अर्थात् अनिष्ट), कटुक, परूष, निष्ठुर, चण्ड (रौद्र-भयंकर), तीव्र (शरीर में शीघ्र व्याप्त हो जाने वाली), दुःख रूप (असुख स्वरूप) दुर्ग (दुःख पूर्वक आश्रय करने योग्य ) और दुस्सह (मुश्किल से सहन करने योग्य ) होती है ।
आधाकर्मादि आहार का फल
-आहाकम्मं 'अणवजे' ति मणं पहारेत्ता भवइ, से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालं करेइ-णत्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ,-अत्थि तस्स आराहणा-एएणं गमेणं णेयव्वं-कीयगडं, ठवियं, रइयगं, कंतारभत्तं, दुभिक्खभत्तं, वदलियाभत्तं, गिलाणभतं, सेजायरपिंडं, रायपिंडं। . ___१४ प्रश्न-आहाकम्म अणवजे' ति बहुजणस्स मज्झे भासित्ता, सयमेव परिभुजित्ता भवइ, से णं तस्स ठाणस्स जाव-अस्थि तस्स आराहणा?
१४ उत्तर-एयं पि तह चेव, जाव-रायपिंडं ।
१५ प्रश्न-आहाकम्मं 'अणवजे' त्ति अण्णमण्णस्स अणुप्पदावइत्ता भवइ, से णं तस्स० ?
१५ उत्तर-एयं तह चेवं जाव-रायपिंडं । १६ प्रश्न-आहाकम्मं णं 'अणवजे' त्ति बहुजणमझे पण्ण
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