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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ६ अन्यतीथिक का मिथ्यावाद
उन्होंने अपने ज्ञान में जैसा देखा वैसा कहा है। अतः उस पर उसी प्रकार श्रद्धा करनी चाहिये।
अपने भारीपन आदि के कारण जब बाण नीचे गिरता है, तब जिन जीवों के शरीर से वह बाण बना है, उन जीवों को पांच क्रियाएँ लगती है। क्योंकि बाणादि रूप जीवों के शरीर तो साक्षात् मुख्य रूप से जीव हिंसा में प्रवृत्त होते हैं और धनुष को डोरी, हारू आदि साक्षात् वध क्रिया में प्रवृत्त नहीं होते हैं, अपितु वे उसमें निमित्त मात्र होते हैं । इसलिये उन्हें चार क्रियाएँ लगती है।
अन्यतीर्थिक का मिथ्यावाद
१२ प्रश्न-अण्णउत्थिया णं भंते ! एवं आइक्खंति, जाव-परूवेंति से जहा णामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा, चक्कस्स वा णाभी अरगाउत्ता-सिया एवामेव जाव-चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइण्णे मणुयलोए मणुस्सेहि-से कहमेयं भंते ! एवं ? ___ १२ उत्तर-गोयमा ! जं णं ते अण्णउत्थिया, जाव-मणुस्सेहिंतो-जे ते एवं आहंसु, मिच्छा । अहं पुण गोयमा ! एवं आइ. क्खामि जाव-एवामेव चत्तारि, पंच जोयणसयाई बहुसमाइण्णे णिरयलोए णेरइएहिं ।
१३ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! किं एगत्तं पभू विउवित्तए, पुहुत्तं पभू विउवित्तए ?
१३ उत्तर-जहा जीवाभिगमे आलावगो तहा णेयव्वो, जाव
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