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भगवती सूत्र-श. ५ उ. १ सूर्य का उदय अस्त होना
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प्रकार का व्यवहार करते हैं कि सूर्य अस्त हो गया और जब सूर्य के सामने किसी प्रकार की आड़ नहीं होती है तब उस देश के लोग सूर्य को देख सकते हैं, तब वे कहते हैं कि सूर्य उदय हो गया है । तात्पर्य यह है कि दर्शक लोगों की दृष्टि की अपेक्षा से ही सूर्य के उदय और अस्त का व्यवहार होता है। कहा भी है;
जह जह समये समये पुरओ संचरइ भक्खरो गयणे । तह तह इओ वि णियमा जायइ रयणी य भावत्यो । एवं च सइ राणं उदयत्थमणाइं होंति अणिययाई।
सयदेसभेए कस्सइ किंचि ववदिस्सइ णियमा ॥ अर्थ-ज्यों ज्यों सूर्य प्रतिसमय आकाश में आगे गति करता जाता है, त्यों त्यों इस तरफ रात्रि होती जाती है । इसलिए मूर्य को गति पर ही उदय और अस्त का व्यवहार निर्भर है । मनुष्यों की अपेक्षा उदय और अस्त ये दोनों क्रियाएं अनियत हैं. क्योंकि देश भेद के कारण कोई किसी प्रकार - व्यवहार करते हैं ।
उपरोक्त सत्र से यह बात बतलाई गई है कि सर्य आकाश में सब दिशाओं में गति करता है । जो लोग ऐमा मानते हैं कि-सूर्य पश्चिम तरफ के समुद्र में प्रवेश करके पाताल में चला जाता है और फिर पूर्व की ओर के समुद्र के ऊपर उदय होता है । इस मत का खंडन उपरोक्त सूत्र से हो जाता है।
शंका-उपरोक्त सूत्र से यह स्पष्ट है कि सूर्य चारों दिशाओं में गति करता है और इससे यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि उसका प्रकाश सदा कायम रहता है, तो फिर कहीं रात्रि और कहीं दिवस ऐसा विभाग जो देखने में आता है, वह किस प्रकार बन सकता है ? उपरोक्त कथनानुसार तो सब जगह सदा दिन ही रहना चाहिये, परन्तु ऐसा होता नहीं है। इसका क्या कारण है ?
___ समाधान-उपरोक्त शंका का समाधान यह है कि यद्यपि सूर्य समी दिशाओं में गति करता है, तथापि उसका प्रकाश मर्यादित है अर्थात् उसका प्रकाश अमुक सीमा तक फैलता है, उससे आगे नहीं । यह नियत है, इसलिये जगत् में जो रात्रि दिवस का व्यवहार होता है वह बाधा रहित है । अर्थात् जितनी सीमा तक सूर्य का प्रकाश, जितने समय तक पहुंचता है, उतनी सीमा में उतने समय तक दिवस होता है और शेष सीमा में उतने समय तक रात्रि होती है यह व्यवहार सूर्य का प्रकाश मर्यादित होने के कारण ठीक है। जम्बूद्वीप में दो सूर्य होते हैं, इसलिये एक ही समय में दो दिशाओं में दिवस होता है और
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