________________
भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ चौदह पूर्वधर मुनि का सामर्थ्य
८३१
एक घडे में से हजार घडे, एक कपडे में से हजार कपडे, एक कट (चटाई) में से हजार कट, एक रथ में से हजार रथ, एक छत्र में से हजार छत्र और एक दण्ड में से हजार दण्ड करके दिखलाने में समर्थ हैं ? .
३८ उत्तर-हाँ, गौतम ! समर्थ हैं।
३९ प्रश्न-हे भगवन् ! चौदहपूर्वी, ऐसा दिखाने में कैसे समर्थ हैं ? ___३९ उत्तर-हे गौतम ! चौदहपूर्वधारी श्रुतकेवली ने उत्करिका भेद द्वारा भिन्न अनन्त द्रव्यों को लब्ध किया है, प्राप्त किया है और अभिसमन्वागत किया है, इस कारण से वह उपरोक्त प्रकार से एक घडे से हजार घडे आदि दिखलाने में समर्थ है।
हे भगवन् ! यह इसी तरह है। हे भगवन् ! यह इसी तरह है । ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
विवेचन-केवली का प्रकरण होने से यहां श्रुतकेवली के सम्बन्ध में कहा जा रहा है।
श्रुत से उत्पन्न एक प्रकार की लब्धि के द्वारा श्रुतकेवली, एक घड़े में से अर्थात् एक घड़े को सहाय भूत बनाकर उसमें से हजार घड़े आदि बनाकर बतलाने में समर्थ हैं।
पूदगलों के खण्ड आदि से पांच प्रकार के भेद होते है। खण्ड,-जैसे ढेले को फेंकने पर उस के टुकड़े हो जाते हैं, इस प्रकार के पुद्गलों के भेद को 'खण्ड भेद' कहते हैं । प्रतर भेद-एक तह के ऊपर, दूसरी तह का होना 'प्रतर भेद' कहलाता है। जैसे अभ्रक (भोडल) आदि के अन्दर प्रतर-भेद पाया जाता है । चूणिका भेद-किसी वस्तु के पिस जाने पर भेद होना 'चूर्णिका भेद' कहलाता है । यथा-तिल आदि का चूर्ण ।
अनुतटिका भेद-किसी वस्तु का फट जाना । यथा-तालाब आदि में फटी हुई दरार के समान पुद्गलों के भेद को 'अनुतटिका' भेद कहते हैं । उत्करिका भेद-एरण्ड के बीज के समान पुद्गलों के भेद को 'उत्करिका' भेद कहते हैं।
यहाँ पर उस्करिका भेद से भिन्न बने हुए द्रव्य बनाने योग्य घटादि पदार्थों के निष्पादन (बनाने) में समर्थ होते हैं । परन्तु दूसरे भेदों द्वारा भिन्न (भेदाये हुए) द्रव्य, इष्ट कार्य करने में समर्थ नहीं होते । इसलिये यहाँ उत्करिका भेद का ग्रहण किया गया
.
यहाँ 'लब्ध' शब्द का अर्थ है-लब्धि विशेष द्वारा ग्रहण करने के योग्य बनाये हुए।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org