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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ५ कुलकर आदि
जिस प्रकार से कर्म बांधे हैं, वे उसी प्रकार से असाता आदि वेदना वेदते हैं, किन्तु परतीथिकों का यह कथन असत्य है, क्योंकि जिस तरह से बांधे हैं, उसी तरह से सभी कर्म नहीं वेदे जाते । इसमें दोष आता है। क्योंकि लम्बे काल में भोगने योग्य बांधे हुए कर्म, स्वल्प काल में भी भोग लिये जाते हैं। इसलिए यह सत्य है कि कितनेक जीव एवंभूत वेदना वेदते हैं और कितनेक जीव अनेवंभूत वेदना वेदते है। .
दूसरी बात यह है कि आगम में कर्मों की स्थितिघात, रसघात आदि बतलाया गया है । इसलिए अनेवंभूत वेदना का सिद्धान्त भी सत्य ठहरता है । जिन जीवों के जिन कर्मों का स्थितिघात, रसघात आदि हो जाता है, वे अनेवंभूत वेदना वेदते हैं और जिन जीवों के स्थितिघात रसघात आदि नहीं होते हैं, वे जीव एवंभूत वेदना वेदते हैं।
कुलकर आदि
६ प्रश्न-जंबुद्दीवे णं भंते ! इह भारहे वासे इमीसे उस्सप्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्था ?
६ उत्तर-गोयमा ! सत्त । एवं चेव तित्थयरमायरो, पियरो, पढमा सिस्सिणीओ, चक्कवट्टिमायरो, इत्थिरयणं, बलदेवा, वासुदेवा, वासुदेवमायरो, पियरो; एएसिं पडिसत्तू जहा समवाए णामपरिवाडीए तहा णेयवा।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव-विहरइ ।
पंचमसए पंचमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-पडिसत्तू-प्रतिशत्रु अर्थात् वासुदेव का प्रतिशत्रु प्रतिवासुदेव, णामपरिवाडिए-नाम की परिपाटी।
भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अव
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