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भगवर्ती सूत्र-शं. ५ उ. ५ अन्यतीथियों का मत-एवंभूत वेदना
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कथन मिथ्या है । हे गौतम ! में तो इस प्रकार कहता हूं यावत् प्ररूपणा करता हंकि कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं और कितनेही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अनेवंभूत (जिस प्रकार कर्म बांधा है उस से भिन्न प्रकार से) वेदना वेदते है।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? - ३ उत्तर-हे गौतम ! जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, अपने किये हुए कर्मों के अनुसार अर्थात् जिस प्रकार कर्म किये हैं, उसी प्रकार वेदना वेदते हैं, वे प्राण, भूत, जीव, सत्त्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं। और जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व अपने किये हुए कर्मों के अनुसार वेदना नहीं वेदते हैं, अर्थात् जिस प्रकार कर्म किये हैं उस प्रकार से नहीं, किन्तु भिन्न प्रकार से वेदना वेदते हैं, वे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, अनेवंभूत वेदना वेदते हैं। इसलिए ऐसा कहा गया है कि कितनेही प्राण, भूत, जीव और सत्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं और कितने ही अनेवंभूत वेदना वेदते हैं। ___ ४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नैरयिक एवंभूत वेदना वेदते हैं, अथवा अनेवंभूत वेदना वेदते हैं ?
४ उत्तर-हे गौतम ! नरयिक एवंभूत वेदना भी वेदते हैं और अनेवंभूत वेदना भी वेदते हैं।
५ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ?
५ उत्तर-हे गौतम ! जो नरयिक अपने किये हुए कर्मों के अनुसार वेदना वेदते हैं, वे एवंमत वेदना वेदते हैं और.जो नरयिक अपने किये हुए कर्मों के अनुसार वेदना नहीं भोगते हैं, किन्तु भिन्न प्रकार से भोगते हैं, वे अनेवंभूत वेदना वेदते हैं । इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त सभी संसारी जीवों के विषय में कहना चाहिए । यहाँ पर संसार मण्डल का वर्णन भी समझना चाहिए।
विवेचन-स्वतीथिक की वक्तव्यता के बाद अब परतीर्थिकों की वक्तव्यता कही जाती है । परतीथिकों का कथन है कि सभी जीव, एवंभून.वेदना वेदते हैं अर्थात् जीवों ने
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