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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ६ अल्पायु और दीर्घायु का कारण ।
कारणों से बांधते हैं ?
३ उत्तर-हे गौतम ! तीन कारणों से जीव, अशुभ दीर्घायु फल वाले कर्म बांधते हैं । यथा-प्राणियों की हिंसा करके, झूठ बोल कर और तथारूप श्रमण माहण की जाति प्रकाश द्वारा हीलना, मन द्वारा निन्दा, खिसना (लोगों के समक्ष निन्दा-बुराई) और गर्दा (उनके समक्ष निन्दा) द्वारा उनका अपमान करके, अमनोज्ञ और अप्रीतिकर (खराब) अशन, पान, खादिम और स्वादिम बहराने से जीव, अशुभ दीर्घायु फल वाले कर्म बांधते हैं।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव शुभ दीर्घायु फल वाले कर्म किन कारणों
से बांधते हैं ?
४ उत्तर-हे गौतम ! तीन कारणों से जीव, शुभ दीर्घ आय फल वाले कर्म बांधते हैं । यथा-प्राणियों की हिंसा नहीं करने से, झूठ नहीं बोलने से, तथारूप श्रमण माहण को वन्दना नमस्कार याक्त पर्युपासना करके किसी प्रकार के मनोज और प्रीतिकारक अशन, पान, खादिम और स्वादिम बहराने से । इन तीन कारणों से जीव, शुभ दीर्घ आयु फल वाले कर्म बांधते हैं।
विवेचन-इस सूत्र में अशुभ दीर्घ आयु के कारणों का कथन किया गया है । श्रमणादि को हीलना आदि पूर्वक देना, अशुभ दीर्घ आयु बंध का कारण है । इस सूत्र में अशनादि के साथ 'प्रासुक' या 'अप्रासुक' विशेषण नहीं लगाया गया है। क्योंकि हीलना आदि करके प्रासुक आहारादि देना भी कोई विशेष फल को पैदा करने वाला नहीं होता। इसलिये इस सूत्र में मत्सरता पूर्वक हौलना आदि को ही अशुभ दीर्घ आयु का प्रधान कारण बतलाया है।
___किसी किसी प्रति में 'अफासुएणं अणेसगिज्जेणं'-यह विशेषण दिये हैं । इसका तात्पर्य यह है कि प्रासुक दान भी हीलना आदि से युक्त हो, तो अशुभ दीर्घ आयु का कारण होता है, तब जो दान अप्रासुक हो और हीलनादि से युक्त हो, वह अशुभ दीर्घ आयु का कारण हो-इस में कहना ही क्या है, अर्थात् वह तो अवश्य ही अशुभ दीर्घ आयु का कारण होता है।
यहां भी प्राणातिपात और मृषावाद को दान का विशेषण बना कर व्याख्या करना भी घटित होता है, क्योंकि अवहीलना एवं अवज्ञा करके दान देने में प्राणातिपात आदि क्रियाएँ देखी जाती हैं । प्राणातिपात आदि क्रियाएँ नरक गति का कारण होने से
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