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भगवती सूत्र - श. ५ उ ६ अल्पायु और दीर्घायु का कारण
साइमेणं पडिला भेमाणस्स कि कज्जइ ? गोयमा ! एगंतसो णिज्जरा कज्जइ । अर्थ - हे भगवन् ! तथा रूप के श्रमण माहण को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम प्रतिलाभने से श्रमणोपासक को क्या होता है ? हे गौतम ! एकान्त निर्जरा होती है ।
महाव्रत की तरह जो निर्जरा का कारण होता है, वह विशिष्ट दीर्घ आयु का भी कारण होता है । इसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं है ।
३ प्रश्न - कह णं भंते ! जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ?
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३ उत्तर - गोयमा ! पाणे अइवा एत्ता, मुसं वइत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा हीलित्ता, पिंदित्ता, खिंसित्ता, गरहित्ता, अवमण्णित्ता अण्णयरेणं अमणुण्णेणं, अपीड़कारएणं असण-पाणखाइम साइमेणं पडिला भेता एवं खलु जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं करेंति ।
४ प्रश्न - कह णं भंते ! जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ? ४ उत्तर - गोयमा ! णो पाणे अइवाइत्ता, णो मुसं वत्ता, तहारूवं समणं वा माहणं वा वंदित्ता णमंसित्ता, जाव - पज्जुवा - सित्ता, अण्णयरेणं मणुण्णेणं, पीइकारएणं असण-पाण- खाइम- साइमेणं पडिला भेत्ता - एवं खलु जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ।
कठिन शब्दार्थ - अवमण्णित्ता - अपमान करके, अण्णयरेणं - ऐसे अन्य, पीइकारएवं प्रीतिकारक |
भावार्थ - ३ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव अशुभ दीर्घायु फल वाले कर्म किन
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