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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ६ भाण्ड आदि से लगने वाली क्रिया
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अशुभ दीर्घायु हो सकती है । कहा है कि
"मिच्छदिट्ठी महारंभपरिग्गहो तिव्वलोभनिस्सीलो।
निरयाउयं निबंधइ, पावमई रोद्दपरिणामो ॥"
अर्थ-पापमति (पाप में बुद्धि रखने वाला) रौद्र परिणाम वाला, महारम्भ महापरिग्रह वाला, तीव्र लोभ वाला, शीलरहित (दुश्शील) और मिथ्यादृष्टि जीव, नरक का आयुष्य बांधता है । नरक गति का आयुष्य विवक्षाकृत अशुभ दीर्घायु ही होता है । ___इसके आगे के सूत्र में शुभ दीर्घायु बन्ध के कारणों का कथन किया गया है । इस सूत्र में भी प्रासुक या अप्रासुक' कोई भी विशेषण दान के साथ नहीं लगाये गये हैं । क्योंकि यह सूत्र इसके पूर्व के सूत्र से विपरीत है । यह सूत्र और पूर्व सूत्र ये दोनों सूत्र निविशेषण रूप से प्रवृत्त हुए हैं । इससे यह नहीं समझना चाहिए कि प्रासुक दान के फल में और अप्रासुक दान के फल में कुछ भी विशेषता नहीं है। क्योंकि पहले के दो सूत्रों में उस फल विशेष को प्रतिपादित किया गया है । यहाँ यह बतलाया गया है कि प्रासुक और एषणीय दान से देवलोक की प्राप्ति होती है और उससे विपरीत दूसरे दान से अर्थात् अप्रासुक और अनेषणीय दान से अशुभ दीर्घायु अर्थात् नरक गति रूप फल होता है-ऐसा जानना चाहिए।
किसी किसी प्रति में तो 'प्रासुक' आदि विशेषण दिय हुए ही मिलते हैं।
यहाँ चार सूत्र कहे गये हैं, उनमें से पहला सूत्र अल्पायु विषयक है । दूसरा दीर्घायु . विषयक है । तीसरा अशुभ दीर्घायु विषयक है और चौथा शुभ दीर्घायु विषयक है ।
भाण्ड आदि से लगने वाली क्रिया
५ प्रश्न-गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा, तस्स णं भंते ! तं भंडं गवेसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कजइ, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादंसणवत्तिया ?
५ उत्तर-गोयमा ! आरंभिया किरिया कजइ, परिग्गहिया,
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