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भगवती सूत्र - श ५ उ. ५ केवलज्ञानी ही सिद्ध होते हैं
'प्राप्त' शब्द का अर्थ है - लब्धि विशेष के द्वारा ग्रहण किये हुए । 'अभिसमन्वागत' शब्द का अर्थ है - घटादि रूप से परिणमाने के लिये प्रारम्भ किये हुए। इनके द्वारा चौदह पूर्वधारी श्रुत केवल एक घट से हजार घट, एक पट से हजार पट, एक कट से हजार कट आदि बनाने में समर्थ होते हैं ।
॥ इति पांचवे शतक का चौथा उद्देशक समाप्त ॥
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शतक ५ उद्देशक ५
“केवलज्ञानी ही सिद्ध होते हैं
१ प्रश्न - छउमत्थे णं भंते! मणूसे तीय-मणतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं० ?
१ उत्तर - जहा पढमसए चउत्थुद्दे से आलावगा तहा णेयव्वा, जाव - अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया ।
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कठिन शब्दार्थ-तीय-मणंतं सासयं - बीते हुए शाश्वत अनन्तकाल में, अलमत्यु - अलमस्तु — सर्वज्ञ सर्वदर्शी केवली ।
भावार्थ - १ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य शाश्वत, अनन्त, भूतकाल में केवल संयम द्वारा सिद्ध हुआ है ?
१ उत्तर- जिस प्रकार पहले शतक के चौथे उद्देशक + में कहा है। वंसा ही आलापक यहाँ भी कहना चाहिये, यावत् 'अलमस्तु' तक कहना चाहिये ।
+ प्रथम भाग पृ. २१६ देखें ।
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