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भगवती सूत्र - अ. ५ उ. ४ श्री अतिमुक्तक कुमार भ्रमण
भवग्गणेहिं सिज्झिहि, जाव अंतं करेहिइ ?
१४ उत्तर - अजो ! त्ति समणे भगवं महावीरे ते थेरे एवं वयासी - एवं - खलु अज्जो ! ममं अंतेवासी अइमुत्ते णामं कुमारसमणे पगइ भइए, जाव- विणीए से णं अइमुत्ते कुमारसमणे इमेणं चेव भवग्गणेणं सिज्झिहिइ जाव अंतं करिहि तं मा णं अजो ! तु अमुतं कुमारसमणं हीलेह, निंदह, खिंसह, गरहह, अवमण्णह; तुम्भेणं देवाणुप्पिया ! अइमुत्तं कुमारसमणं अगिलाए संगिण्हह, अंगिलाए उवगिण्हह, अगिलाए भत्तेणं पाणेणं विणरणं वेयावडियं करे | अमु णं कुमारसमणे अंतकरे चेव, अंतिमसरीरिए चेव; तए णं ते थेरा भगवंतो समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वृत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वदति, णमंसंति, अइमुत्तं कुमारसमण अगिलाए संगिण्हंति, जाव - वेयावडियं करेति ।
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कठिन शब्दार्थ - कहि-कितने, अवमण्णह - अपमान करना, अगिलाए - ग्लानि रहित, उवगिण्हह - स्वीकार करो -संभाल करो ।
भावार्थ- १४ प्रश्न - हे भगवन् ! आपका शिष्य अतिमुक्तक कुमार श्रमण कितने भव करने के बाद सिद्ध होगा ? यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा ?
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१४ उत्तर- श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उन स्थविर मुनियों को सम्बोधित करके कहने लगे- हे आर्यों ! प्रकृति से भद्र यावत् प्रकृति से विनीत मेरा अन्तेवासी (शिष्य) अतिमुक्तक कुमार इसी भव से सिद्ध होगा । यावत् सभी दुःखों का अन्त करेगा । इसलिए हे आर्यों ! तुम अतिमुक्तक कुमार श्रमण की होलना, निन्दा, खिसना, गर्हा और अपमान मत करो । किन्तु हे देवानुप्रियों !
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