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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ श्री अतिमुक्तक कुमार श्रमण
तुम अग्लान भाव से अतिमुक्तक कुमार श्रमण को स्वीकार करो। उसकी सहायता करो और आहार पानी के द्वारा विनय पूर्वक वैयावच्च करो। क्योंकि अतिमुक्तक कुमार श्रमण अन्तिम शरीरी है और इसी भव में सब कर्मों का क्षय करने वाला है । श्रमग भगवान महावीर स्वामी द्वारा उपरोक्त वृतान्त सुनकर उन स्थविर मुनियों ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार किया। फिर वे स्थविर मुनि अतिमुक्तक कुमार श्रमण को अग्लान भाव से स्वीकार कर यावत् उसकी वैयावच्च करने लगे।
विवेचन-पहले के प्रकरण में भगवान महावीर स्वामी के गर्भसंहरण रूप आश्चर्य का कथन किया । अब इस प्रकरण में भगवान् के शिष्य अतिमुक्तक कुमारश्रमण + की आश्चर्यकारी घटना का वर्णन किया जाता है। अतिमुक्तक कुमार ने छोटी उम्र में ही दीक्षा ली थी । कालान्तर में वर्षा हो जाने के बाद स्थविर मुनि बाहर-भूमिका पधारे। अतिमुक्तक कुमार श्रमण भी उनके साथ बाहर-भूमिका पधारे । मार्ग में बरसात के पानी का एक छोटा नाला बह रहा था । अतिमुक्तक मुनि ने उस नाले के मिट्टी की पाल बांध दी। जिससे पानी वहां इकट्ठा हो गया। फिर उसमें अपना पात्र छोडकर इस प्रकार कहने लगे कि 'मेरी नाव तिर रही है, मेरी नाव तिर रही है।' बाल स्वभाव के कारण वे इस प्रकार क्रीड़ा करने लगे। जब स्थविर मुनियों ने यह देखा, तो उनके मन में शंका उत्पन्न हुई । इसलिये अतिमुक्तक कुमार श्रमण से कुछ कहे बिना ही वे भगवान् की सेवा में आये । अपनी शंका का समाधान करने के लिये उन्होंने भगवान से पूछा कि 'हे भगवन् ! अपका शिष्य अतिमुक्तक कुमार श्रमण कितने भवों में सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त होगा।'
__भगवान् ने फरमाया कि-'हे आर्यों ! अतिमुक्तक कुमार श्रमण अन्तकर (कर्मों का अन्त करने वाला) है और अन्तिम शरीरी है । अर्थात् वह इस शरीर के पश्चात् दूसरा शरीर धारण नहीं करेगा, अपितु इस शरीर को छोड़कर वह सिद्ध बुद्ध यावत् मुक्त होजायगा। इसलिये तुम उसकी हीलना (जाति आदि को प्रकट करके निन्दा) मत करो । मन से भी निन्दा मत करो । खिसना (मनुष्यों के सामने अवगुणवाद प्रकट करके चिढ़ाना) मत करो। गर्दा (उसके सामने अवर्णवाद कहना) मत करो । अवमानना (उस की उचित शुश्रूषा
+ अतिमुक्तक ने छोटी उम्र में दीक्षा ली थी, इसलिए 'कुमारश्रमण' कहा गया है। टीकाकार ने तो लिखा है कि-अति मुक्तक कुमार ने छह वर्ष की उम्र में ही दीक्षा ली थी।
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