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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ छद्मस्थ और केवली का हंसना व निद्रा लेना
निकट रहे हुए तथा बीच में रहे हुए एवं सभी प्रकार के शब्दों को जानते और देखते हैं। केवली भगवान् पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्वदिशा और अधोदिशा यावत् सभी दिशा और विदिशाओं में रहे हए मित और अमित अर्थात् संख्य, असंख्य और अनन्त सभी पदार्थों को जानते और देखते है। क्योंकि केवली भगवान् का ज्ञान अनन्त पदार्थों को विषय करता है, इसलिये वह अनन्त ज्ञान है। घाती कर्मों का क्षय कर देने से उनका ज्ञान अक्षय, निरावरण, वितिमिर एवं विशुद्ध है ।
छद्मस्थ और केवली का हंसना व निद्रा लेना
६ प्रश्न-छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से हसेज वा, उस्सुयाएज वा?
६ उत्तर-हंता, गोयमा ! हसेज वा, उस्सुयाएज वा ।
७ प्रश्न-जहा णं भंते ! छउमत्थे मणुस्से हसेज, जाव-उस्सु. याएज तहा णं केवली वि हसेज वा, उस्सुयाएज वा ?
७ उत्तर-गोयमा ! णो इणढे समटे ।
८ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! जाव-णो णं तहा केवली हसेज वा, जाव-उस्सुयाएज वा ?
८ उत्तर-गोयमा ! जं णं जीवा चरित्तमोहणिजस्स कम्मस्स उदएणं हसंति वा, उस्सुयायंति वा; से णं केवलिस्स गस्थि, से तेणटेणं जाव-णो णं तहा केवली हसेज वा, उस्सुयाएज वा ।
९ प्रश्न-जीवे णं भंते ! हसमाणे वा, उस्सुयमाणे वा कइ
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