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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ शक्रदूत हरिनैगमेषी देव
१३ उत्तर-हाँ, गौतम ! हरिनगमेषी देव उपरोक्त कार्य करने में समर्थ है । ऐसा करते हुए वह देव, उस गर्भ को थोडी या बहुत कुछ भी-किञ्चित् मात्र भी पीड़ा नहीं पहुँचाता । वह उस गर्भ का छविच्छेद (छेदन भेदन) करता है और फिर बहुत सूक्ष्म करके अन्दर रखता है अथवा इसी तरह अन्दर से बाहर निकालता है।
विवेचन-पहले के प्रकरण में केवली के विषय में कथन किया गया है। इस प्रकरण में भी केवली भगवान् महावीर स्वामी के उदाहरण को लेकर बात कही जाती है। यद्यपि यहाँ मलपाठ में महावीर स्वामी का नाम नहीं दिया है, तथापि 'हरिनैगमेषी' देव का नाम आने से यह अनमान होना शक्य है कि यह बात भगवान महावीर से सम्बन्धित है। क्योंकि जब भगवान् गर्भावस्था में थे, तब इसी देव ने गर्भमंहरण (गर्भ का परिवर्तन) किया था। यदि यहाँ की घटना भगवान महावीर के साथ घटित करना न होता, तो मूलपाठ में 'हरिनंगमेषी' का नाम न देकर सामान्य रूप से 'देव' का निरूपण कर दिया जाता । किन्तु ऐसा न करके जो 'हरिनैगमेषी' का नाम दिया है. इससे पूर्वोक्त अनुमान दृढ़ होता है ।
इन्द्र को 'हरि' कहते हैं. तथा इन्द्र सम्बन्धी व्यक्ति को भी 'हरि' कहते हैं । हरिनैगमेषी देव, इन्द्र सम्बन्धी व्यक्ति है । इसलिए यहाँ पर 'हरिनैगमेषी' देव को भी 'हरि' कहा गया है। 'हरिनैगमेषी' देव, शक की आज्ञा मानने वाला है और वह पदाति (पैदल) सेना का अधिपति है, इसलिए उसे 'शक्रदूत' कहा गया है।
'प्राणत' नामक दसवें देवलोक से चव कर महावीर स्वामी का जीव देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में आया । बयासी दिन बीत जाने पर शकेन्द्र को अवधिज्ञान से यह बात ज्ञात हुई । तब शक्रेन्द्र ने विचार किया कि समस्त लोक में उत्तम पुरुष तीर्थङ्कर भगवान् का जन्म क्षत्रिय कुल के सिवाय अन्य कुल में नहीं होता, उनका जन्म उत्तम क्षत्रिय कुल में ही होता है । ऐसा विचार कर शक्रेन्द्र ने हरिनगमेषी देव को बुलाकर आज्ञा दी कि चरम तीर्थङ्कर भगवान् महावीर स्वामी का जीव पूर्वोपार्जित कर्म के कारण क्षत्रियेतरब्राह्मण-याचक कुल में आ गया है । अतः तुम जाओ और देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से उस जीव का संहरण कर क्षत्रियकुण्ड ग्राम के स्वामी, प्रसिद्ध राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशलादेवी के गर्भ में स्थापित कर दो । शक्रेन्द्र की आज्ञा स्वीकार कर हरिनैगमेषी देव ने आश्विन कृष्णा त्रयोदशी की रात्रि के दूसरे पहर में देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ का संहरण कर महारानी त्रिशला देवी की कक्षा में रख दिया।
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