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____भगवती सूत्र-श. ५ उ. ३ आयुष्य सहित गति
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वैमानिक । इन में से किसी एक प्रकार के देव का आयुष्य बांधता है।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं।
विवेचन-यह आयुष्य सम्बन्धी प्रकरण चल रहा है। इसलिए यहां पर भी आयुष्य सम्बन्धी बात कही जाती है।
जीवं, परभव की आयुष्य इस भव में ही बांधते हैं और उस आयुष्य सम्बन्धी कारणों को बांधने का आचरण भी इसी भव में करते हैं । केवल वे जीव ही परभव का आयुष्य नहीं बांधते हैं जो चरमशरीरी होते. हैं, क्योंकि वे समस्त कर्मों का क्षय कर उसी भव में मोक्ष चले जाते हैं।
जो जीव, परभव का आयुष्य बांधता है, वह नरकादि चारों गतियों में से किसी एक गति का आयुष्य बांधता है । नरक गति का आयुष्य बाँधता है, तो सात नरकों में से किसी एक नरक का आयुष्य बांधता है। इसी तरह तिर्यञ्चों में एकेंद्रियादि किसी एक का आयुष्य बांधता है। मनुष्यों में सम्मूच्छिम और गर्भज, इन दो में से किसी एक का आयुष्य बांधता है। यदि देवगति का आयुष्य बांधता है, तो भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक, इन चारों में से किसी एक का आयुष्य बांधता है । तात्पर्य यह है कि परभव का आयुष्य, इसी भव में बंधता है और वह एक ही समय बंधता है।
॥ इति पांचवें शतक का तीसरा उद्देशक समाप्त ॥
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