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भगवती सूत्र श. ५ उ. ३ आयुष्य सहित गति
उस आयुष्य सम्बन्धी आचरण कहाँ किया है ?
३ उत्तर - हे गौतम ! उस जीव ने वह आयुष्य, पूर्व-भव में बांधा है और उस आयुष्य सम्बन्धी आचरण भी पूर्वभव में ही किया है। जिस प्रकार यह बात नरक के लिये कही गई है । उसी प्रकार यावत् वैमानिक तक सभी दण्डकों में कहनी चाहिये ।
४ प्रश्न - हे भगवन् ! जो जीव, जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, क्या वह जीव, उस योनि सम्बन्धी आयुष्य बांधता है ? यथा-नरक योनि में उत्पन्न होने योग्य जीव, क्या नरक योनि का आयुष्य बांधता है, यावत् देवगति में उत्पन्न होने योग्य जीव, क्या देव योनि का आयुष्य बाँधता है ?
४ उत्तर - हाँ, गौतम ! ऐसा ही करता है, अर्थात् जो जीव, जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य होता है, वह जीव उस योनि सम्बन्धी आयुष्य बांधता है । नरक में उत्पन्न होने योग्य जीव, नरक योनि का आयुष्य बांधता है । तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने योग्य जीव, तिर्यंच योनि का आयुष्य बांधता है । मनुष्य योनि में उत्पन्न होने योग्य जीव, मनुष्य योति का आयुष्य बांधता है और देवयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव, देवयोनि का आयुष्य बांधता है । जो जीव, नरक का आयुष्य बांधता है, वह सात प्रकार की नरकों में से किसी एक प्रकार की नरक का आयुष्य बांधता है । यथा - रत्नप्रभा पृथ्वी का आयुष्य अथवा यावत् अधः सप्तम पृथ्वी (सातवीं नरक) का आयुष्य बांधता है जो जीव, तिर्यंच योनि का आयुष्य बांधता है ? वह पांच प्रकार के तिर्यंचों में से किसी एक तिर्यंच सम्बन्धी आयुष्य बांधता हैं। यथा-एकेंद्रिय तिर्यंच का आयुष्य, इत्यादि । इस संबंधी सारा विस्तार यहाँ कहना चाहिये। जो जीव, मनुष्य सम्बन्धी आयुष्य बांधता है, वह दो प्रकार के मनुष्यों से किसी एक प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी आयुष्य को बांधता है । सम्मूच्छिम मनुष्य का अथवा गर्भज मनुष्य का । जो जीव, देव सम्बन्धी आयुष्य बांधता है, वह चार प्रकार के देवों में से किसी एक प्रकार के देव का आयुष्य बांधता है । यथा - भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और
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