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भगवती सूत्र-श. ५ उ. १ सूर्य का उदय अस्त होना
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तया णं उत्तरड्ढेऽवि दिवसे भवइ, जया णं उत्तरड्ढेऽवि दिवसे भवइ, तया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपञ्चस्थिमे णं राई भवइ ? . २ उत्तर-हंता, गोयमा ! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वि दिवसे जाव-राई भवइ । ...
३ प्रश्न-जया णं भंते ! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं पचत्थिमेण वि दिवसे भवइ, जया णं पञ्चत्थिमे णं दिवसे भवइ; तया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ ?
३ उत्तर-हंता, गोयमा ! जया णं जंबूदीवे दीवे मंदरपुरथिमे णं दिवसे, जाव-राई भवइ ?
कठिन शब्दार्थ-उदीण पाईण-उत्तर पूर्व के बीच की दिशा अर्थात् ईशान कोण, दाहिण पडोण–दक्षिण और पश्चिम के बीच की दिशा अर्थात् नैऋत्य कोण, पडीण उदीण-पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच अर्थात् वायव्य कोण, पाईण दाहिण-पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा अर्थात् आग्नेय कोण ।
भावार्थ--१ प्रश्न-उस काल उस समय में चंपा नाम की नगरी थी, वर्णन करने योग्य-समृद्ध । उस चंपा नगरी के बाहर पूर्णभद्र नाम का चैत्य (व्यंतरायतन) था। वह भी बर्णन करने योग्य था। वहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे, यावत् परिषदा भगवान् को वन्दन करने के लिये और धर्मोपदेश सुनने के लिये गई और यावत् परिषदा वापिस लौट गई।
. उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अंतेवासी गौतम गोत्री इन्द्र भूति अनगार थे, यावत् उन्होंने इस प्रकार पूछा
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