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भगवती सूत्र - श. ५ उ. २ ओदन आदि के शरीर
कठिन शब्दार्थ - उदण्णे- ओदन, कुम्मासे - कुल्माष-उड़द, सुरा-मदिरा, घणे - घनगाढ़ा, पुण्यभावपण्णवर्ण-पूर्व भाव प्रज्ञापना- पूर्व अवस्था का वर्णन, पडुच्च - अपेक्षा, त्याईया - शस्त्रातीत - शस्त्र लगने के बाद, अगणिज्झामिया - अग्नि से जलने पर ।
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भावार्थ - १५ प्रश्न - हे भगवन् ! ओदन ( चावल ), कुल्माष - उड़द और सुरा - मदिरा, इन द्रव्यों का शरीर किन जीवों का कहलाता है ?
१५ उत्तर - हे गौतम! ओदन, कुल्माष और मदिरा में जो धन कठिन द्रव्य है, वह पूर्वभाव - प्रज्ञापना की अपेक्षा वनस्पति जीवों के शरीर हैं। जब वे ओदन आदि द्रव्य शस्त्रातीत (ऊखल मूसल आदि द्वारा पूर्व पर्याय से अतिक्रांत ) हो जाते हैं, शस्त्र परिणत ( शस्त्र लगने से नये आकार के धारक ) हो जाते हैं, अग्नि-ध्यामित ( अग्नि से जलाये जाने पर काले वर्ण के बने हुए), अग्नि भूषित ( अग्नि में जल जाने से पूर्व स्वभाव से रहित बने हुए) अग्नि सेवित और अग्नि- परिणामित ( अग्नि में जल जाने पर नवीन आकार को धारण किये हुए) हो जाते हैं, तब वे द्रव्य अग्नि के शरीर कहलाते हैं । तथा सुरा (मदिरा) में जो प्रवाही पदार्थ है, वह पूर्व भाव प्रज्ञापना की अपेक्षा अप्काय जीवों के शरीर हैं। जब वह प्रवाही पदार्थ शस्त्रातीत यावत् अग्नि परिणामितहो जाते हैं, तब अग्निकाय के शरीर हैं, इस प्रकार कहे जाते हैं ।
१६ प्रश्न - अह णं भंते! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले, कसट्टिया - एए णं किंसरीरा इ वतव्वं सिया ?
१६ उत्तर - गोयमा ! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले, कसट्टिया - एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च पुढवी जीवसरीरा, तओ पच्छा सत्थाईया, जाव - अगणिजीवसरीरा इ वत्तव्वं सिया ।
कठिन शब्दार्थ - अये - लोहा, तंबे - ताम्बा, तउए - त्रपुष् - कलई - रांगा, सीसए - सीसा,
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