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भगवती सूत्र-श. ५ उ. २ स्निग्ध पथ्यादि वायु
है, इसीलिए इसे (अढाई द्वीप समुद्र को अथवा मनुष्य क्षेत्र को) 'समयक्षेत्र' कहते हैं । इससे आगे दिन रात्रि आदि समय का व्यवहार नहीं होता । क्योंकि वहां सूर्य चन्द्र आदि के विमान जहाँ के तहाँ स्थिर हैं। दिन रात्रि आदि समय का व्यवहार सूर्य चन्द्र की गति पर निर्भर है।
॥ इति पांचवें शतक का पहला उद्देशक समाप्त ॥
शतक ५ उद्देशक २
स्निग्ध पथ्यादि वाय.
१ प्रश्न-रायगिहे णयरे जाव एवं वयासी-अस्थि णं भंते ! ईसिंपुरेवाया, पच्छा वाया, मंदा वाया, महावाया वायंति ?
१ उत्तर-हंता, अस्थि । ___२ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! पुरथिमे णं ईसिंपुरवाया, पच्छा वाया, मंदा वाया, महावाया वायंति ? । ___२ उत्तर-हंता, अस्थि । एवं पचत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, उत्तरपुरथिमे णं, दाहिणपुरस्थिमे णं, दाहिणपञ्चत्थिमे णं उत्तरपञ्चत्थिमे णं ।
३ प्रश्न-जया णं भंते ! पुरथिमे णं ईसिंपुरेवाया, पच्छा वाया,
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