SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७७४ भगवती सूत्र-श. ५ उ. २ स्निग्ध पथ्यादि वायु है, इसीलिए इसे (अढाई द्वीप समुद्र को अथवा मनुष्य क्षेत्र को) 'समयक्षेत्र' कहते हैं । इससे आगे दिन रात्रि आदि समय का व्यवहार नहीं होता । क्योंकि वहां सूर्य चन्द्र आदि के विमान जहाँ के तहाँ स्थिर हैं। दिन रात्रि आदि समय का व्यवहार सूर्य चन्द्र की गति पर निर्भर है। ॥ इति पांचवें शतक का पहला उद्देशक समाप्त ॥ शतक ५ उद्देशक २ स्निग्ध पथ्यादि वाय. १ प्रश्न-रायगिहे णयरे जाव एवं वयासी-अस्थि णं भंते ! ईसिंपुरेवाया, पच्छा वाया, मंदा वाया, महावाया वायंति ? १ उत्तर-हंता, अस्थि । ___२ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! पुरथिमे णं ईसिंपुरवाया, पच्छा वाया, मंदा वाया, महावाया वायंति ? । ___२ उत्तर-हंता, अस्थि । एवं पचत्थिमे णं, दाहिणे णं, उत्तरे णं, उत्तरपुरथिमे णं, दाहिणपुरस्थिमे णं, दाहिणपञ्चत्थिमे णं उत्तरपञ्चत्थिमे णं । ३ प्रश्न-जया णं भंते ! पुरथिमे णं ईसिंपुरेवाया, पच्छा वाया, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy